दिग्विजय सिंह चौहान
मेरे सभी सम्माननीय साथियों हम देख रहे हैं कि लगातार 24 दिसंबर से जब से मुख्यमंत्री ने हमारे लिए घोषणा की है तब से हमारे साथियों मे लगातार मुख्यमंत्री सरकार और यहां तक की अपने क्षेत्र के विधायक व मंत्रियों और सरकार से जुड़े छोटे-छोटे पदाधिकारियों तक का स्वागत करने की होड़ लगी हुई हैं ।
साथियों 25 दिसंबर को सभी संगठन के प्रमुख पदाधिकारियों ने अपनी स्वस्थ भारतीय परंपरा का निर्वहन करते हुए cm हाउस जाकर मुख्यमंत्री का अभिवादन सिर्फ और सिर्फ इसलिए किया था कि उन्होंने हमारे प्रति घोषणा की थी। आदेश जारी होने में लग रहे समय और आदेश के संबंध में मुख्यमंत्री मंत्री और संबंधित अधिकारियों का चुप्पी साधना हमारे मन में संशय पैदा कर रहा है। हमारे जेल से निकलने के बाद से आज तक माननीय मुख्यमंत्री जी से हमारे प्रतिनिधियों की कई बार चर्चा हुई किंतु माननीय मुख्यमंत्री जी द्वारा की गई घोषणा के पूर्व या घोषणा करने के बाद आज दिनांक तक किसी भी संघ या संगठन के पदाधिकारियों को यह नहीं बताया गया है कि किस प्रकार से वेतनमान दिया जाएगा, क्या विसंगतियां दूर होगी या नहीं होगी ? केवल घोषणा करने का यह मतलब नहीं है कि हम लगातार धन्यवाद देते फिरे और सरकार का गुणगान करते फिरे। ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं की सरकार ने छठवें वेतनमान की घोषणा करके अध्यापक संवर्ग पर कोई एहसान नहीं कर दिया है, जो वेतनमान हमें 1 जनवरी 2006 को मिल जाना था उसे 10 साल बाद हमें दिया जा रहा हैं । और आम जनता में यह मैसेज दिया जा रहा है कि मध्यप्रदेश के अध्यापकों के लिए सरकार ने कुबेर का खजाना खोल दिया हैं । साथियों सरकार तो प्रचार करने का काम करेगी ही, क्योंकि वह वेतनमान दे रही हैं , लेकिन हमारे साथी क्यों दीवाना हुए जा रहे हैं ? हम क्यों डोंडी पीट रहे हैं ? हमारे ऐसा करने से आम जनता में यह मैसेज जा रहा है कि अध्यापकों को सब कुछ मिल गया, जबकि हमें तो यह भी पता नहीं है की हमें वेतनमान किस प्रकार से मिल रहा है ? और क्या फार्मूला हैं ?
वैसे भी अभी तो यह सिर्फ एक पड़ाव है हमने अभी से ही इसे मंजिल समझ लिया है। जबकि हमारी असली मंजिल तो शिक्षा विभाग में संविलियन हैं । आज इस पड़ाव पर ही यदि हम जय जयकार करने लगेंगे तो जब हम शिक्षा विभाग में संविलियन के लिए संघर्ष करेंगे, तब यही आम जनता हमें विलेन समझेगी। इसलिए आप सब पढ़े लिखे और समझदार हैं। आप समझ सकते हैं कि हमें सरकार से अपनी मांगे तो मनवानी ही हैं, आम जनता और समाज में भी हमारी छवी नकारात्मक ना बन जाए ऐसा प्रयास करना होगा। जब तक हमारे हाथ में संबंधित आदेश नहीं आ जाते तब तक हमें बहुत ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं हैं, अन्यथा खुशी जताने की अतिशयोक्ति हमें आने वाले समय में बहुत तकलीफ दे सकती है। आदेश आने पर हम उस आदेश का विश्लेषण करेंगे। यदि आदेश हमारे अनुकूल होगा तो निश्चित रुप से हम गुणगान करें और जय-जयकार करें। लेकिन यदि आदेश में फिर कहीं कोई कमी जानबूझकर की गई तो फिर कहीं ऐसा ना लगे की हम फिर से ठग लिए गए हैं। अतः मेरा आप सब से हाथ जोड़कर निवेदन है कि थोड़ा सा संयम रखकर के आदेश आने तक बहुत ज्यादा उतावलापन ना दिखाएं। विगत 24 दिसंबर से आज दिनांक तक जो परिस्थितियां निर्मित हुई है उनका विश्लेषण करते हुए मैंने अपने यह विचार आप लोगों के बीच में रखे हैं , कृपया इसे नकारात्मक रुप में नहीं लें। हम सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते रहें । हम जोश में भी रहें लेकिन अपने होश भी कायम रखें ।
क्या खूब कहा है किसी ने कि
" जिसको हम मंजिल समझ रहे, वह तो एक रात का बसेरा हैं।
एक मशाल और जलाओ यारों, कि आगे बहुत अंधेरा
महज यह तो एक पड़ाव है मंज़िल तो दूर है
Monday, 4 January 2016
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