सम्मानीय अध्यापक,संविदा शिक्षक साथियों,
हमारे प्रदेश में शिक्षकों अध्यापकों की दुर्दशा जो बर्षों से चली आ रही है इसके लिए क्या हम स्वयं जिम्मेदार नहीं हैं हमारी इस स्तिथि के लिए मुझें लगता है की इसमें सरकार के साथ हमारी सवसे बड़ी कमजोरी एकता में अनेकता की हमारी दोषपूर्ण नीति पूर्णता जिम्मेदार है।
हमारे प्रदेश में शासकीय कर्मचारियों में सवसे अधिक संख्या शिक्षकों/अध्यापकों की ही है पर फिर भी हमें एक छोटी से छोटी मांग को पूरा करने में बर्षों लग जाते है और जव तक हम कोई मांग को वामुश्किल पूरी करवा पाते है समय और आगे बड़ चूका होता है और हमारी उस मांग का फल ऊट के मुँह में जीरे के समान मिलता है जैसे 2006 का 6th pay हमें 10 साल बाद 2016 में मिलेगा और उसमें भी अभी विसंगति नाम की डायन हमें खाय जात है तव तक यह विसंगति दूर नहीं होती तव तक 6th pay का कोई लाभ अध्यापकों को नहीं होने बाला।
अध्यापकों का शिक्षा विभाग में संविलियन कब तक होगा किसी को पता नहीं।
अध्यापकों की ट्रांसफर्ड नीति जिसका पिछले 18 बर्षों से अध्यापक मांग और इन्तजार कर रहे है आज भी अधर में लटकी हुई है।
संविदा शिक्षकों की 3 बर्ष की संविदा अवधि की दोषपूर्ण नीति जो बर्षों बाद आज भी जारी है।
गुरुजियों का अध्यापक बनने का सपना आज भी सपना ही बना हुआ है।
साथियों छत्तीशगढ़ राज्य के शिक्षा कर्मी संघ का ये पत्र देखिये इसमें सभी संघ को संगठित करने का कितना अनुकरणीय प्रयाश किया गया जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है।
हमारे प्रदेश में अध्यापकों के 10 से 12 संघ है जो रजिस्टर्ड हैं क्या ऐसा प्रयाश हमारे मध्य प्रदेश के अध्यापक संघ और उसके पदाधिकारियों द्वारा नहीं किया जा सकता। हमारी संख्या लाखों में होने के बाबजूद हम हजारों और सेकड़ों में क्यों बंटे हुए हैं क्या कारण है की हम संगठित नहीं हो पा रहे है साथियों एक कहावत है की खुली मुट्ठी खाक की और बंद मुट्ठी लाख की। साथियों अगर हम लाखों की संख्या में संगठित हो जाते है तो हमारी कोई भी ऐसी मांग नहीं जो पूरी ना हो सके वस आवश्यकता संगठित होने की है।
संजीव साहू
7697786768
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