घर - घर जाकर बच्चे गिने
गिने गाँव के लोग
खसरा गिना ,पोलियो गिना
गिने सारे रोग
लड़ते है चुनाव नेता
खूब मनाते मौज
गठरी सर पर रखकर
मास्टर सहता बोझ
दो - दो बूँद खूब पिलाई
पकड़ -पकड़कर नाक
सब चट कर जाते चतुर सुजान
हमरे हिस्से राख
समूह बनाता भोजन और
मास्टर जिम्मेदार
चूहा ,मेंढक,छिपकली का
असली पहरेदार
दूध पिलाते हम बच्चों को
जैसे उनकी माई
तिरछी - तिरछी देखती
मध्याह् न वाली बाई
किसकी कौन जाति है
कौन टोटम गौत्र
किसका पिता कौन है
कौन किसका पौत्र
ला कर देते हम ही
जाति का प्रमाण
कैसे मिले शिक्षक को
अब इस शोषण से त्राण
जनशिक्षक आता
रौब दिखाता
जैसे बड़ी तोप
दौरे - दौरे - दौरे
हर दौरा एक ख़ौफ
सर्वर सबका डाउन है
हुई सुबह से शाम
आईडी ,मैपिंग,प्रोफाइल
उफ़ ! कितना बोझील काम
भागे -भागे स्कूल जाते
पड़ी पैर में मोच
ई- अटेंडेंस डायन सी
डरा रही है रोज
कर्मठता पर अकर्मण्यता के
आरोप निराधार
अब तो हम बना रहे
बच्चों के आधार
आँखे फोड़ी कागज़ काले
डाक उठाई हरकारा
पीत दन्त पटेल ने भी
देरी पर दुत्कारा
उपहास उड़ाते हमारा
दो दो कौड़ी वाले
ज्ञानवान की गरिमा के
खंड - खंड कर डाले
लिखी कर्म की पोथी को
कैसे कैसे बाँच रहा
फरमानों के घुँघरू बाँधे
शिक्षक देखो नाच रहा
गधे - घोड़े एक सम
चौपट सा विश्वास
कोई फेल होगा नहीं
बच्चे सारे पास
बच्चा स्कूल आता नहीं
पालक दिखाता आँख
कैसे उड़े ज्ञान का पंछी
जब नोची सबने पाँख
-एक अध्यापक
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