बात सम्मान की है होना भी चाहिए । समाज में यही तो वह आभूषण है जिससे समाज निखरता है। सम्मान पर सभी का समान हक भी है। एक लोकतांत्रिक राज्य में यह शासको का कर्तव्य होता है कि वे इसका समायोजन करे कि समाज के तिरस्कृत जनो में भी इसका वितरण करे।
शायद सम्मान के साथ वितरण शब्द आपको उचित न लगे लेकिन यह गहन चिंतन का विषय है।
दोस्तो सम्मान की चाह किसे नही होती ? लेकिन राज्य में शायद सम्मान के आरक्षण की व्यवस्था पर अभी संवैधानिक व्यवस्था बनाई जाना शेष है। शिक्षक समाज को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है शायद इसके पिछे दलिल दी जा सकती है कि शिक्षको के सम्मान की पुरातन प्रथा में दोष होने के कारण इसे विलोपित किया जाना प्रस्तावित हो । अब यह राजशाही और सामंतो तक विशेषाधिकार के मामले हो सकते है। लेकिन हम राजशाही के सम्मान के बीच आ रहे अवरोधो के मौलिक कारको से अनभिज्ञ होने के कारण इस महत्वपूर्ण प्रथा के उपर आ रहे संकट को दूर करने में भी अक्षम है। इसलिए हम प्रदेश के आजाद अध्यापक संघ के जिलाध्यक्षो सहित प्रांत के समस्त पदाधिकारियों के साथ 21 एवं 22 जनवरी 2016 को शिवीर आयोजित कर रहे है जिसमें मुख्यमंत्री जी से मिलने की कवायद कर यह भी जानने के प्रयास किये जाएंगे कि शिक्षको के सम्मान की पुरातन प्रथा के पुर्नजीवीत किये जाने एवं समाज में श्रेष्ठ सम्मानजनक दृष्टीकोण के पुर्नस्थापन से राजशाही का यदि कोई नुकसान न हो तो इस पर भी ध्यान दिया जाए। अध्यापक अपने अधिकतर सेवाकाल को भोगचुका है लिहाजा विसंगति रहित आदेश जारी करने से एक भी अध्यापक टाटा या अम्बानी का विकल्प नही बनेगा इस बात के खतरे से यदि कोई भयभीत है तो उसे भी दूर करें ।
सम्मान के अवरोध दोनो और से कम किये जाने की दशा में शायद मध्यप्रदेश के सम्मान के मार्ग भी प्रशस्त हो सके। आखिर व्यक्ति सम्मान से राज्य का ललाट भी चमकेगा ही ।
तो आईये मिलते है भोपाल में।
-जावेद खान
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