मन की बात :
अध्यापक साथियो मेरे मन में एक सवाल उठ रहा है की आज प्रदेश में छटवे वेतनमान की विसंगति को लेकर प्रदेश की फिजा में जहर सा घुल गया है , लेकिन इस विसंगति की जड़ को जानने की - किसी ने कोशिश तक नहीं की | में यह पोस्ट किसी संघ या संघठन के पदाधिकारी की हेसियत से नहीं एक आम अध्यापक की ओर से डाल रहा हूँ |
बात कहाँ से सुरू करूँ माह सितंबर वर्ष 2013 आंतरिम राहत का विसंगति पूर्ण आदेश जिसने पूरे प्रदेश के सहायक और वरिष्ठ अध्यापकों को झगझोर कर रख दिया था | इस विसंगति की तह तक जाने के लिए मेने और अजीतपाल यादव जी ने RTI के माध्यम से जानकारी चाही तो लगभग इसकी नोट सीट 6 माह बाद हमको प्राप्त हुई |
में जानना चाहता हूँ की केबिनेट द्वारा प्रस्तावित छ्टवे वेतनमान की इतनी महत्वपूर्ण नोट सीट की संक्षेपिका केबिनेट में पारित होने के मात्र 30 मिनिट में बाहर कैसे आ गई | जिसे निकलवाने में महिनों लग जाते हैं |
(1) क्या यह कार्य सुरक्षा की द्रष्टि से अपराधिक श्रेणी में नहीं आता ?
(2) जिस किसी ने ये सब किया इसके पीछे उसकी मंसा क्या थी ? क्या वह प्रदेश में अध्यापकों की फिजा विगाडना चाहता था ? उसकी इस हरकत के कारण प्रदेश के अध्यापक मानसिक रूप से आहत हुये हैं जहां जाओ वहाँ बस एक ही चर्चा | जिस किसी ने भी ऐसा किया हे क्या उसके खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज नहीं होना चाहिये ?
(3) क्या यह कोई मामूली प्रकरण हे , जो केबिनेट में लिए जाने वाले महत्वपूर्ण निर्णयों की गोपनियता और सुरक्षा को चुनोती नहीं देता ? ऐसा क्यों हुआ मेरी समझ से परे | आप सब समझदार हैं |
आपका
केसव रधुवंशी
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