सादर वंदन
साथियो आज प्रदेश के अध्यापकों के सामने नये नये तथ्य आने से भ्रमित हो रहे है।भाईयो आज कुछ लोग कहते हैकि सकारात्मक सोच रखे।माननीय मुख्यमंत्री जी पर विश्वास रखो ।वे सहज, उदार हदय वाले व्यक्ति है।शायद उनके इसी विश्वास के कारण पूर्व में संक्षेपिका में उनको कोई विसंगति नजर नही आई। जो बाद में दिखने लगी ।जो लोग माननीय मुख्यमंत्री से सीधी बात करने की दहाड़ मारते थे और कहते थे एक तरफ प्रदेश का अध्यापक एक तरफ माननीय मुख्यमंत्री जी।आज अचानक विश्वास की बाते।कुछ संदेहास्पद लगता है। कारण चाहे कुछ भी हो....?? और आज प्रदेश के अध्यापको को सकारात्मक सोच रखने का ढाढ़स बधाते हुये उनकी जिज्ञासा शांत कर दी जाती है। मैं मानता हूँ आस पर आसमान टिका है। लेकिन अध्यापक हर बार लुटा है।
"लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यों है,
इतना डरते है तो फिर घर से निकलते क्यों है"
आज मै उन लोगो को जो विश्वास और धेर्य, संयम की बाते करते है।उनके विश्वास को स्पष्ट कर देना चाहता हूं।
28 जून 2013 को माननीय मुख्यमंत्री जी ने अध्यापक संवर्ग को समान कार्य समान वेतन की घोषणा झाबुआ में की थी।जो आज तक पूरी नही हुई।तो फिर विश्वास क्यों...???
जब शिक्षामंत्री जी ने 6पे वेतन के संदर्भ में अपने बयान में 5500 करोड़ का वित्तीय भार बताया ।तो फिर बाद में आदेश को पलटकर 1125 करोड़ क्यों...??? तो फिर विश्वास क्यो...????
बार बार महापंचायत की तारीको में परिवर्तन क्यो...???तो फिर विश्वास क्यो...???
माननीय मुख्यमंत्री जी के द्वारा मंचो से कहा गया कि मैं ही दूगा ।मेने ही दिया है।सामने बैठकर चर्चा करें।तो फिर चर्चा में केवल एक मांग पर सहमति क्यो....??? जबकि आंदोलन में 6पे वेतन और संविलियन दो प्रमुख मांगे थी।तो फिर विश्वास क्यो..???
महापंचायत को शिक्षा गुणवत्ता महापंचायत का नाम क्यों...???शायद मुद्दे से भटकाकर हमें बदनाम करने की साजिश...????एक तरफ कहा जाता है कि प्रदेश के अध्यापको द्वारा अच्छी शिक्षा दी जा रही है।प्रदेश के सरकारी स्कूलो से क ई छात्रो का आई आई टी परीक्षा में प्रवेश हुआ।तो फिर गुणवत्ता शब्द को बीच में डाला गया क्यो...??? कहीं ऐसा तो नही हमें बदनाम कर शिक्षा का निजीकरण करने की साजिश की जा रही हो।
गुणवत्तायुक्त शिक्षा के लिये शिक्षण संसाधनो की अनिवार्यता होती है।तो संसाधनो पर चुप्पी क्यो...???क्या प्रदेश के केन्द्रीय सरकारी स्कूलो की तरह संसाधन गुणवत्ता हेतु उपलब्ध नही कराने चाहिये ।तो फिर विश्वास क्यो....????
कुछ साथी कहते है कि संक्षेपिका गुमराह करने के लिये फर्जी तो नही।तो मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं ।यदि संक्षेपिका फर्जी होती तो जगह जगह ज्ञापन देने के बाबजूद अब तक माननीय मुख्यमंत्री जी या शिक्षा मंत्री जी का बयान क्यो नही।कि संक्षेपिका फर्जी है।इसका सीधा अर्थ है कि संक्षेपिका पूर्णत: सही है।
संक्षेपिका जैसा महत्तपूर्ण गोपनीय दस्तावेज मंत्रालय से लीक कैसे हो गया।ये समझ से परे।तो फिर संबधित अधिकारियो के खिलाफ कार्यवाही क्यो नही।कहीं गेमप्लान तो नही।शायद गैमप्लान में हो सकता है कि चाणक्य वीरों की औकात देखी जाये।इनमें कितनी ताकत है।यदि इनकी औकात प्रबल हुई तो संसोधनपूर्ण आदेश और यदि दुर्बल हुई तो यही विसंगतिपूर्ण आदेश ।तो फिर विश्वास क्यो....?????
कुछ भाईयो द्वारा कहा जा रहा है कि विश्वसनीय सूत्रो से ज्ञात हुआ है कि पंचायत मंत्री जी के द्वारा 6वेतनमान के प्रस्ताव पर हस्ताक्षर हो गये है।इसका आश्य है कि अभी फाईल पंचायत विभाग और नगरीय निकाय में ही है।क्योकि फाईल पर शासकीय सेवक के हस्ताक्षर होते है।मसौदे व प्रस्ताव पर मंत्री जी का अनुमोदन होता है।तो इसका सीधा मतलब है कि यदि पंचायत मंत्री जी के हस्ताक्षर हुये है।तो अभी प्रस्ताव पर अनुमोदन ही हुआ है।और कहां गया है जल्द ही डी पी आई से आदेश जारी होगे।और उक्त आदेश में पूरी संभावना है कि कोई विसंगति नही होगी।बार बार माननीय मुख्यमंत्री जी की बात पर धोखा खाने के बाद भी क्या आपकी बात पर विश्वास किया जा सकता है।कि आदेश विसंगति रहित होगे। क्या 1125 करोड़ में विसंगति दूर हो सकती है...??? क्या आपने जो आदेश तैयार हो रहे है।उसे अपनी आंखो से देखा है।तो फिर विश्वास क्यो...???? अब प्रदेश का अध्यापक दूध से जला हुआ है।अब वह 100 बक्का 1 लिख्का की कहावत पर विश्वास करना चाहता है।ऐसे तो कोई भी व्यक्ति विश्वसनीय सूत्रो का हवाला देकर अध्यापकों को भ्रमित कर सकता है।
एक बात तो तय है कि आदेश 29 जनवरी के बाद ही होगे चाहे उन आदेशो का परिणाम कैसा भी हो।उससे पहले नही उसके बाद ही प्रसारित होगे।क्योकि कुछ संघीय पदाधिकारियो ने माननीय मुख्यमंत्री जी से चर्चा का समय 29 जनवरी का लिया है।शायद उन्हे पता हो कि इससे पहले आदेश नही हो सकते।
इन सब बिंदुओ का निष्कर्ष निकालने के बाद केवल एक ही विकल्प हमारे सामने है।कि 25 जनवरी तक विसंगति रहित आदेश न निकलने की स्थिति में रैली निकाली जाये।आंदोलन किया जाये।इसके बाद सरकार वार्ता का प्रस्ताव रखेगी ।लेकिन हमारा लक्ष्य वार्ता न होकर केवल आदेश ही निकले ऐसा हो।जब तक आंदोलन जारी रहे।क्योकि इतिहास साक्षी है ।आज तक हमें जो भी मिला है।वो सरकार पर दबाब बनाने के कारण ही मिला है।
इसलिये सभी संघीय पदाधिकारियो को राजनैतिक छल कूटनीतिक कपट श्रेय लेने की महत्तवाकांक्षा छोड़कर अध्यापकहित में संयुकत मोर्चा के बैनरतले पूरी ताकत के साथ आंदोलन में आगे आये ।शायद तभी सार्थक परिणाम आ सकते है।
तो आईये हम सभी संगठित होकर राग,द्वेष ,छल,कपट छोड़कर संयुक्त मोर्चा का जयकारा लगाते हुये अपने अधिकार पाने के लिये हिम्मत और होंसलों की उड़ान भरते हुये अपनी मंजिल पाये।सफलता निश्चित ही हमारे कदम चूमेगी।क्योकि एकता में शक्ति निहित होती है।
संयुक्त मोर्चा जिंदाबाद ,अध्यापक एकता जिंदाबाद
"शत्रु प्रबल कितना भी हो मरने से वह भी डरता है,
सीधे सींगों वाले पशु का कौन सामना करता है,
तूफानी हर लहर सदा चट्टानो से लड़ हारी होगी,
कुछ बनना कायर मत बनना अंतिम विजय तुम्हारी होगी"
वे हमीं तो है कि एक हुंकार से लालघाटी कांपी,
वे हमीं तो है जिन्होने सी एम हाउस की दूरी नापी,
और वे भी हम जिनके प्रताप से,चन्द्रगुप्त हो गया विश्वव्यापी"
कौशल क्रांतिकारी चम्बल
मोबाइल न. +919691171268
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