सादर वंदन
भाईयो जब समान कार्य समान वेतन की अनुशंशा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में और मानव अधिकार घोषणा पत्र के अनुच्छेद 21,22,23 में वर्णित होते हुये भी हमारा शोषण क्यो???
मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का कानून है। तो फिर क्यो नही सभी विभागीय मंत्रियो ,सचिवो ,अधिकारियो एवं कर्मचारियो के बच्चो को सरकारी स्कूलो में पढ़ाने के लिये बाध्य करने वास्ते शासन अधिसूचना जारी क्यो नही करता ???? जबकि शासन की सभी सुविधाओ का लाभ लेते है।तो सरकारी स्कूल क्यो नही????जबकि माननीय उच्चम न्यायालय खण्डपीठ द्वारा इस संदर्भ मे निर्णय भी दे चुका है।देहात के गरीब बच्चो के साथ इनको अपने बच्चो को पढ़ाना रास नही आता।वेतन सरकार से लेते है तो फिर सरकारी स्कूल क्यो नही???
एक तरफ गुणवत्तायुक्त शिक्षा की बात की जाती है।और शिक्षको को बदनाम किया जाता है।मै पूछता हूं ।इन सत्ताधारियो से क्या कभी संसाधनो की बात की???
और जिन केन्द्रीय स्कूलो में संसाधन है।उनमें ये सत्ताधारी गुणवत्ता परीक्षण करले।आज तक का इतिहास है।कभी भी केन्द्रीय सरकारी स्कूलो से ( केन्द्रीय स्कूल, नवोदय स्कूल) से किसी भी निजी स्कूल का परिणाम श्रेष्ठ नही रहा।तो फिर केन्द्रीय स्कूलो की तर्ज पर संसाधन और वेतन क्यो नही????
शिक्षा के क्षेत्र में निजी संस्थाओ के बाजार में पैसे फेंकते है।और अपने बच्चो को डाक्टर इन्जीनियर बनाते है।हर स्तर पर प्रतिभाओ का दोहन हो रहा है।और गरीब छात्र ठगा सा रह जाता है।शिक्षा के निजीकरण से भृष्टाचार को बढ़ावा दे रहे है।वही दूसरी तरफ भृष्टाचार समाप्त करने की बात की जाती है।निजी क्षेत्र में शिक्षण संस्थान खोलकर नेतालोग अपनों लाभ पहुंचाते है। या फिर वोट बैंक के लिये प्रदेश को शिक्षा का हब बनाने का ड्रामा करते है।
जब प्रदेश के सभी विभागीय कर्मचारियो को सारे लाभ दिये जा रहे है वेतन स्थानांतरण जैसे तो फिर हमें क्यो नही??
क्या भाईयो इन सब बातो से हमारे साथ अन्याय नही हो रहा है।जब इतनी सारी विसंगतियां और हमारा शोषण हमारे सामने है।तो फिर क्यो हम संघीय ढ़ाचे में बटकर विघटित हो रहे है।भाईयो यदि हम एक नही हुये तो हमारा दोहन ऐसे ही होता रहेगा।हमें संगठित होकर अपने हक की लडा़ई लड़नी है।भाईयो जो व्यक्ति अपने अधिकार के लिये नही लड़ता उसे कायर की परिभाषा में सम्मिलित किया जाता है।शायद इसी लिये आज हमें मंदिर का घंटा समझकर चाहे जो बजा जाता है।और मै ये भी जानता हूं कि चाणक्य कभी कायर नही हो सकता ।चाणक्य भी उसी व्यक्ति का सम्मान करता जो उसके स्वाभिमान को ठेस न पहुचाता हो।जब चाणक्य के सम्मान और स्वाभिमान पर ठेस पहुचती है।तो नंदवंश का भी तख्ता पलट दिया जाता है।शायद भाईयो फिर उसी इतिहास को दोहराने की आवश्यकता है।और जिस राजा के राज्य में यदि गुरु को सम्मान और अधिकार न मिले तो उस राज्य में अराजकता फेल जाती है और विकास की जगह विनाश निश्चित होता है।
तो साथियो उठो एक होकर पुरजोर शक्ति के साथ हुंकार भरो ।हुंकार भरो ।हुंकार भरो।हुंकार भरो।
"हम डरते नही एटमबंमो से,विस्फोटो से,जलपोतो से,
हम डरते है तो केवल झूठे समझोतो से"
"झूठी वार्ता करके तुम किस मद पर फूल गये,
चाणक्य वीरों को शायद तुम भूल गये"
-कौशल क्रांतिकारी चम्बल
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