सादर वंदन
भाईयो इस समय प्रदेश में 11अध्यापक संघ है।अगर हम इनमें से चार संघो की बात करें तो यदि एक जिले के चार संघो के संख्याबल की बात करें तो एक जिले में अनुमानित 5 ब्लाक माने तो एक ब्लाक मे एक संघ की 8 सदस्य कार्यकारिणी होती है इस हिसाब से एक ब्लाक में 32 अध्यापक सदस्स हो गये और इस हिसाब से एक जिले में चार सघो के 160 अध्यापक सद्स्य होगे और प्रदेश में 8000 अध्यापक सदस्य हो रहे है।ये आंकलन मोटे तोर पर लगाया है।इतने तो कम से कम है।अगर ये 8000 अध्यापक जिधर चल पडे़गे उधर रास्ता हो जायेगा लेकिन हो एकजुट ।मैं चाहता हूं कि सब संघ एक बैनर तले संयुक्त मोर्चा के नीचे आ जाये ।और बस एकजुटता से पूरी निष्ठा कर्मठता से हुंकार भर दे।लेकिन आगे बढ़ने के बाद पीछे नही हटे ।तो हंगामा हो जायेगा।कहते है ताकतवर इंसान के पीछे दुनियां चलती है तो हमारी इस ताकत को देखकर खुद व खुद हमारे साथी भी पीछे चल पडे़गे।बस आगे बढ़के मंजिल पाने तक रुकना नही।मेरा दावा है एक झटके में 6पे और संविलियन न हो जाये।इस बात की गारंटी है।लेकिन एकजुट क्यों नही हो रहे??ऐसी क्या परिस्थिति??क्या संघो को अध्यापकहितो की चिंता नही??अगर है तो आओ एक साथ मिलकर अपने अधिकार पाने को हुकार भरें।इतिहास साक्षी है जब जब भी आदोलन हुआ तब तब हमारी फूट के कारण ही हमें सरकार द्वारा हर बार मिले टुकडे़ में ही सब्र करना पड़ा।और हर बार बेचारा अध्यापक ठगा सा रह जाता है ।वो हर बार आपके विश्वास के साथ आंदोलन में कूद जाता है।नहीं तो अब तक हमें हमारे अधिकार मिल गये होते।और आज ये दिन नही देखना पड़ता कब का फैसला हो गया होता ।एक बार की ताकत एक बार की बीरता जीवन बदल देती है।पर पता नहीं क्यो एक नही होना चाहते??क्या लालच??कही राजनीति तो नही??या श्रेय लेने की होड़??इन सबसे कुछ नही होता यदि आप सभी संघ मिलकर प्रदेश के 2 लाख अध्यापकों का भला करते हो।तो आपका जीवन सफल होगा गरीब अध्यापको की दुआऐ लगेगी।उनके बच्चे और परिवार वाले आशीष देगे।जीवन भर आप लोगो को अपने हदय में संजोयकर रखेगे।गुणगान करेगे आपका।फिर क्यूं नही सामने आते ।क्या आपको अध्यापकों से अधिक अपनी राजनीति प्यारी है??या कहीं ये डर तो नहीं लगता कि हमारा बजूद खत्म नही हो जाये??अगर इनकौ एक बार में सारै अधिकार मिल गये तो फिर हमारी राजनीति की दुकान कैसे चलेगी??यदि ऐसा नही तो उठ!खडे़ हो जाओ कमर कस कर कि जब तक फैसला आर पार नही हो जाता तब तक मैदान नही छोड़गे।फिर क्यूं नही।क्या आपका आत्मविश्वास कमजोर है ।नहीं भाई अपने पडो़सी भाई छत्तीसगढ़ को देखलो उदाहरण आपके सामने है।फर्क सिर्फ इतना है कि कुछ पाने के लिये पहले कुछ खोना पड़ता है।जंग जीतने की इच्छा सबमें होती है परंतु जीतने के लिये तैयारी की इच्छा बहुत कम लोगो में होती है।यही सफलता और असफलता के बीच का अंतर है।इसलिये सभी लोग जंग जीतने की तैयारी में लग जायें बिना एक दुसरे के द्वेषभाब के साथ।केवल अध्यापकहित दिखना चाहिये जैसे अर्जुन को केवल तोते की आंख दिखाई दी ठीक वैसे ही।निश्चित ही आपके कदमों में आपके अधिकार होगें।तो आओ बिना कुछ सोचे निकल पडे़ मशाल लेकर जंग ए मैदान में ।सोचने से कुछ नही होता क्योंकि जो सरफिरे होते है इतिहास वही लिखते है।अगर इसे पढ़ने के बाद किसी भी संघ के प्रांतीय पदाधिकारी का कोई बयान नही आता है तो प्रदेश के अध्यापको का आप लोगो के नेत्तव पर संदेह करना गलत नही होगा ।समझा जायेगा कि कहीं न कहीं दाल में काला है या आप लोगो को अध्यापकहितो की चिंता नही सिर्फ हमारे नाम से राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही है।वैसे मुझे उम्मीद है कि इस आलेख को पढ़ने के बाद आप लोगो का कदम हमारे विश्वास और भरोसे को बनाते हुये अध्यापकों के पक्ष में ही होगा।
"हवा के रुख को कोई बदल नही सकता,
सूरज के ताप को कोई सह नही सकता,
करले चाहे कोई कितने ही बदलावो की कोशिश,
,चाणक्य के बनाये उसूलों को कोई बदल नही सकता"
कौशल क्रांतिकारी चम्बल
9691171268
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