म.प्र.शासकीय अध्यापक संगठन 2013 में अंत तक मैदान में था
नहीं किया था कोई समझोता
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अशोक कुमार देवराले
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साथियों वैसे तो मेरा मनना है कि हमारी लड़ाई सरकार से होना चाहिए ।आपस में हम एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप पुर्णतः बंद होना चाहिए।
मैं अजीत पाल जी की पोस्ट से पुर्णतः सहमत हूँ कि विरोध होना चाहिए विसंगति का........
परन्तु हम कर रहें है एक दूसरे का निवेदन तो यही है कि हम एकजुट होकर अपनी मांगों के संदर्भ में सरकार के सामने एक जुटता के साथ खड़े हो.......
फिर भी हमारे एक भाई ने कुछ प्रश्नों के जवाब चाहें है जो उस प्रकार है..........
1.2013 में म.प्र.शासकीय अध्यापक संगठन ने किसी भी समझोते में भाग नहीं लिया था। न ही सरकार से कोई समझोता किया था ।कोई भी अध्यापक साथी या स्वयं लेखक महोदय सूचना के अधिकार के माध्यम से ये जानकारी प्राप्त कर सकते है कि म.प्र.शासकीय अध्यापक संगठन के समझोते पर हस्ताक्षर हैं या नहीं ....
2.म.प्र.शासकीय अध्यापक संगठन
अंत तक मैदान में था।अगर आपको 2013 के आंदोलन की जानकारी हो तो शायद आप जानते ही होंगे या आप पता करें कि 22 सितम्बर तक अंत में मात्र एक ही संगठन आंदोलन रत था ।हमारे ऊपर केस भी दर्ज हुआ जो आज तक चल रहा है।
बृजेश शर्मा, आरिफ अंजुम आदि सभी पर उस अंतिम लड़ाई का केस चल रहा है। आप पता कर सकते है
3.साथियों संयुक्त मोर्चा गठन करना कोई गलत नहीं था सभी संगठनों को एक साथ लाने का एक यही तरीका है हर संगठन एक किसी के बैनर पर तैयार नहीं होते ।संयुक्त होकर लड़ने पर आपकी आपत्ति मेरे विचार से उचित नहीं है।
4.साथी यही प्रश्न आप से भी किया जा सकता है कि क्या अध्यापक हित में हम सब संयुक्त मोर्चे के तहत नहीं लड़ सकते है।
5.सभी संगठन आजाद के आंदोलन में किसी प्रकार बाधक नहीं बनना चाहते थे परंतु आम अध्यापक चाहता था कि सभी संगठन एक साथ हों यही कारण था कि सब संयुक्त के साथ आगे आये।
6.सभी संगठनों का संयुक्त गठबंधबन हो मोर्चा होता है फिर आस के समर्थन का सवाल ही नहीं उठता।
7.जब संयुक्त मोर्चा बन गया था तो फिर बैनर पर आजाद की फ़ोटो नहीं लगना चाहिए थी । संयुक्त गठबंधन पर इन बैटन का ध्यान रखा जाना चाहिए।
8.आप ठीक से पता करें माननीय मुख्यमंत्री जी के सामने ऐसी कोई बात नहीं हुई है।
9.जब आजाद अध्यापक संघ संयुक्त मोर्चे से अलग हुआ तभी ये परेशानी आई थी ।आरोप प्रत्यारोप का दौर चला था।
10. साथी जेल जाना कोई शौक नहीं है न ही उंगली काटकर शहीद होना हमारी फितरत है क्योकिं 1995 से लेकर 2015 तक कई बार जेलों में राते गुजारी है ।पुलिस की लाठियां और जेल से गहरा नाता हो गया है
आज तक कई आंदोलन के केस चल रहे है ।
यह प्रश्न जो पहली बार आंदोलन में आया हो उसके लिए उचित हो सकता है
साठीयन पुनः एक बार हम सब संयुक्त होकर अपनी मांग पूरी कर सकते है।
पुरे सम्मान के साथ आपको आमन्त्रण है।
संयुक्त मोर्चा संकल्पित है कि अध्यापक हित में सब कुछ करेगा परन्तु अध्यापक के साथ किसी भी प्रकार का धोखा नहीं होने देगा।
अशोक कुमार देवराले
प्रांतीय उपाध्यक्ष
म.प्र.शासकीय अध्यापक संगठन
सदस्य
अध्यापक संयुक्त मोर्चा म.प्र.
शासकीय अध्यापक संगठन 2013 में अंत तक मैदान में था नहीं किया था कोई समझोता: अशोक देवराले
Thursday, 24 March 2016
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