महंगे इलाज के कारण पेट के अलसर का उपचार ठीक से न करा पाने के चलते एक और परिचित अध्यापक मुकेश मालवीय की आज मौत हो गई। जुन्नारदेव ब्लाक में जनशिक्षक का काम करते हुए जब अलसर की पीड़ा असनीय हो जाती थी, तब वे नागपुर जाकर इलाज करा आते थे। वेतन के रूप में उन्हें जो मिलता था, वह इलाज के लिए अपर्याप्त था, जिस कारण वे नागपुर में भर्ती रहकर इलाज नहीं करा पाए और आज पेट के अन्दर ही अलसर फट गया, जिससे उनकी मौत हो गई।
बुलेट ट्रेन दौड़ाने, स्मार्ट सिटी बनाने के दावे करने वाली सरकारों की सेवा करते हुए जब एक शिक्षक की अलसर जैसी बीमारी से मौत होती है, तब ऐसी सरकारों से किसी तरह की हमदर्दी नहीं रह जाती। महंगे इलाज के कारण असमय मौत का शिकार होने वाले मुकेश मालवीय 15वें ऐसे अध्यापक हैं, जिन्हें मैंने बीते एक साल में खोया है।
क्या करना चाहिए?
अपने मृत अध्यापक साथी के परिवार की मदद के लिए जरूरी है कि हम लोग जितना छठवें वेतनमान के आदेश के लिए बैचेन हैं, उससे अधिक बैचेन मृत अध्यापक की अंशदायी पेंशन में जमा राशि उसके परिवार को दिलाने के लिए होना चाहिए। यह समय इस एकसूत्रीय एजेंडे पर काम करने का समय भी है क्योंकि अब तक मप्र में हमारे सैकड़ों अध्यापक साथी असमय मौत के शिकार हो चुके हैं, जिन्हें उन्हीं का जमा पैसा नहीं मिला है और न ही सरकार की ओर से किसी तरह की पेंशन शुरू की गई है। मेरा मानना है कि तमाम अभियानों 10-15 दिन के लिए किनारे करते हुए पहली फुर्सत में डीपीआई पर चढ़ाई कर मृत अध्यापकों की अंशदाीय पेंशन में जमा राशि उनके परिजनों को दिलाते हुए सरकार के वादे के अनुसार निश्चित पेंशन तय कराई जानी चाहिए। अब तक अंशदायी पेंशन से मृत अध्यापक के किसी भी परिवार को किसी तरह का भुगतान नहीं किया गया है, जो अपने आप में सरकार की बड़ी लापरवाही है। मुकेश मालवीय की मौत के बाद मुझे लगता है इस काम की शुरूआत की जानी चाहिए। सभी अध्यापक मित्रों से अनुरोध है कि वे अपने-अपने जिलों की मृत अध्यापकों की सूची तैयार करें। हो सके तो कमेंट बाक्स में भी इसकी जानकारी दें।
साभार-
आई टी सेल
राज्य अध्यापक संघ मध्यप्रदेश।
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