संयुक्त मोर्चे का नेतृत्व भरत पटेल करें या अन्य कोई जो भी करे आम अध्यापकों की निम्न मुख्य मांगों के लिए आंदोलन करे और मुख्य सभी मांगें पूरी होने से पहिले आंदोलन समाप्त न करे या एक मांग मानने पर सरकार की वाहवाही न करे। प्रथम चरण में प्रमुख मांगें होगी:- 1. शिक्षा विभाग में संविलियन । 2. 6वाँ व 7वाँ वेतनमान विसंगति रहित 01 जन 2016 से। ३. पुरुष स्थान्तरण नीति तत्काल प्रभाव से। 4 . फैल गुरुजियों का संविलियन व संविदा अवधि कम करना। वैसे मेरे ख्याल से शिक्षा विभाग में संविलियन होने पर तीसरी व चौथी मांग स्वतः पूरी हो जायेगी।
शेष अन्य मांगों के लिए दूसरे चरण में आंदोलन किया जा सकता है।
सामाजिक दृष्टि से भी अध्यापकों का बार बार आंदोलन करना भी अच्छा सन्देश नहीं देता है।अतः आरपार की लड़ाई के लिए आंदोलन दो चरणों से अधिक में न हो।
आम अध्यापक बार बार आंदोलन नहीं चाहता जबकि इसके ठीक विपरीत प्रांतीय नेतृत्व की सोच होती है कि आंदोलन चलते रहें जिससे हमारी राजनीत भी चमकती रहे।
अध्यापक साथियो अध्यापकों से संबंधित अभी तक जितने भी आदेश होते रहे हैं उन सभी यह लिखा होता था कि .....इस वेतन के स्थान पर ....दिनांक से यह ....वेतनमान देय होगा।25/02/2016 के आदेश में लिखा है कि 1 जनवरी 2016 से छठवाँ वेतनमान देय होगा।इस आधार पर मेरा मानना है कि छठवे वेतनमान की सेवा शर्तो के अनुरुप 2400 ग्रेड पे को संवर्ग वेतन 7740=00 व 3600 के संगत 10230 =00 संवर्ग वेतन मिलेगा।सभी संघ के नेता अब एक दूसरे पर आरोप न लगाते हुए,अनुकंपा नियुक्ति,स्थानांतरण नीति ,व शिक्षाविभाग में संविलियन ,वरिष्ठ अध्यापकों के प्रमोशन के माँगों की रणनीति बनाऐ।हाँ यह बात बिल्कुल सत्य कि आजाद संघ ने हम सभी को जागृत किया जिससे हम आप सब के प्रयासों से सितम्बर 2017 से 21 माह पूर्व वह लाभ मिलने जा रहा है।जो 2017 में मिलता।सभी एकता बनाए रखें अन्यथा अलग अलग खिचडी पकाने पर शिक्षा विभाग रिटायर होने के बाद भी न मिलेगा। कुछ नेता पहले तो एकता की बात करते हैं और मौके पर कहते हैं ऐ हमारा नहीं फलाने संघ का आन्दोलन हैं।हमने तो इन्हें आन्दोलन करने से मना किया था ।ऐसे वीरों से हाथ जोडकर निवेदन है कि वे जो भी हों एकता की बात न करें।अगर फिर भी एकता की बात करनी है तो पहले अपने संघ का पंजीयन समाप्त कर एकता के रास्ते पर मील का पत्थर साबित हों।और केवल एक संघ बनाकर आन्दोलन करें।पर ऐसा कोई नहीं करेगा क्योंकि सबको अपनी नेतागिरी चमकाने की पडी है।सब सोंचते कि हम ऐसा करेंगें तो फिर हमें एम पी लेवल पर जानेगा कौन ,फिर हमारी नेतागिरी का क्या होगा? अगर आप ऐसे नहीं हैं तो हिम्मत दिखाइए आज अध्यापक किसी विशेष संघ का गुलाम नहीं है जो अध्यापक हित की सोंचेगा अध्यापक उसका साथ देंगें।यह बात भी ध्यान रखें कि सब को एम एल ए की टिकिट न मिल जाएगी और न सब विधायक बन जाएगें।अभी कई नेता डी ई ओ ऑफिस व अन्य ऑफिसों में नेतागिरी के नाम पर टाइम पास करते रहते हैं।अगर एकता हो गई तो उन्हें डर है कि उन्हें फिर रोज स्कूल जाना पडेगा।फिर उनकी नेतागिरी न चलेगी।ऐ मेरे निजि विचार हैं किसी संघ विशेष के नहीं ।
( लेखक स्वतंत्र विचारक है । )
आरपार की लड़ाई के लिए आंदोलन दो चरणों मे ही हो।
Friday, 18 March 2016
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