1) अध्यापक साथी अधिक से अधिक विद्यार्थियों के बीच समय बिताये । आपका विद्यार्थी आपकी हर बात को आत्मसात करता है, रोल माॅडल मानता है, फालो करता है । प्रतिदिन नैतिक शिक्षा, शहीदों के जीवन के संस्मरण, समसामयिक परिद्रश्य, जल, जंगल, जमीन पर बात करें ।
उनके साथ खेलें, उनके सुख दुःख को समझने का प्रयास करें । बाल, नाखून, तेल, कँघी की बात करें, कपडों पर बात करें । अभिरूचि को समझने का प्रयास करें ।
हमारे लिए ये बेहद निराशाजनक और खतरे की घंटी है कि 10000 शालायें 20 की दर्ज संख्या के नीचे पहुँच गई है । अगर यही हालात रहे तो सारी माँग बेमानी और बेमतलब की हो जायेंगी । खुद दिल पर हाथ रखकर सोचें कि निजीकरण की और कौन धकेल रहा है?
आओ मिलकर ये प्रण करें कि हम हमारे स्कूलों को बेहतर बनाने के लिए जी जान से जुट जायेंगे और इसको एक मिशन की तरह लेंगे ।
आओ करें, कुछ कर दिखायें
मिलकर अपनी शालाओं को बचाये ।
शिक्षा की अलख जगानी है
खून में अभी रवानी है ।
मिशन स्कूल बचाओ
पढो और पढाओ ।
जय हिंद ।
2) स्थानांतरण नीति का अभाव एक दंश है अध्यापक संवर्ग के लिए। जो शासन की दृढ इक्छा शक्ति का अभाव और हमारे संवर्ग के प्रति बेरूखी को प्रदर्शित करता है ।
क्या कारण हैं कि विगत 18 वर्षों मे एक ऐसी नीति घोषित नहीं कर पाये जिसमें एक रूपया का भी आर्थिक भार नहीं आना । ये सिद्ध करता है हमारे वर्ग के प्रति घोर बेरुखी ।
परिवार, माँ बाप, समाज सब बेकार है 18 वर्ष से । कोई जिम्मेदारी सही ढंग से निर्वाह नहीं कर पा रहे । हर काम आधे अधूरे मन से ।
शायद हम अपने आप को आधा और अधूरा इंसान कह सकते हैं कि खुशी भी मिली और मना भी न पाये ।
अजित पाल यादव
No comments:
Post a Comment