आस के सकारात्मक प्रयास का खूब सीला दे रहे हैं आप। धन्यवाद पर जिस तरह आप अजीत भाई पर उनके तकनिकी ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह लगा रहे हैं तो मुझे लगता हे मुझे भी आप पर जमीनी ज्ञान का प्रश्न चिन्ह लगना होगा। क्या जानते हैं आप सितम्बर के आंदोलन के पहेले और बाद के बारे में?
बहोत ज्ञान हे तो जवाब दीजिये-
1 जब 2013 में लिखित समझोता कर हम सभी के भविष्य के 4 खंड कर दिए गए तब बाकी अध्यापक नेता कौन सी नींद सो रहे थे।
2 धोका तो केवल पाटीदार ने दिया था तो वो नेता किस से पूछ कर अपने हस्ताक्षर कर आए थे जो आज मोर्चा की शान बने हुए थे।
3 जब आंदोलन आज़ाद के नाम पर था सकारात्मक पहेलु पर अध्यापक शक्ति शाशन प्रसाशन के समक्ष थी तब आज़ाद का चहेरा क्यों बदला गया।
4 क्या अध्यापक हित में ये महान नेता आज़ाद के नाम पर एक नहीं हो सकते थे?
5 आंदोलन के पूर्व एक एक नेता से निवेदन किया गया तब उन्हें ये आंदोलन का सहीं वक़्त नहीं लग रहा था और फिर आंदोलन को सफल राह पर देखते हुए सभी उठ खड़े हुए मोर्चा के नाम पर। क्या ये आज़ाद को पीछे करने की पहल नहीं थी।
5 समर्थन आस ने मोर्चा को दिया जबकि वस्तुस्थिति में मोर्चे ने आस को देना था क्या ये गलत हे।
6 मोर्चे की अहम बैठक जीसके 1 घंटे बाद ही सी एम् से वार्ता होनी थी, तब मोर्चा का प्रस्ताव जरुरी था या बेनर पर आज़ाद की फोटो को लेकर राकेश पांडे का बहस कर सभा भंग करना।
7 जब आस मोर्चे के साथ था मतलब उस समय चहेरा बदल कर आस की जगह मोर्चा का सामने किया तो सी एम् को बोलना की हमने कुछ नहीं किया ये तो आस वालो ने किया। क्या ये कायरता दिखानी वहां जरुरी थी।
8 जब पूरा प्रदेश एकता के सूत्र में बंधा नजर आ रहा था तो राकेश पांडे और अहिरवार जी के निरंतर आरोपो से अध्यापकों को अलग अलग बाटने का प्रयास उचित था।
9 यदि श्रेय मोर्चा लेना चाहता था तो फिर ये प्रश्न आस से क्यों, यदि आप ये प्रश्न आस से कर रहे हैं तो उक्त दशाओं में आप कहाँ थे।
और यदि आप ये कहें की मोर्चा या अन्य संघों ने भी इस आंदोलन में जेल गए थे प्रयास किया था तो केवल एक ही उत्तर हे और रहेगा " मरता क्या न करता" समाप्त हो जाता सभी संघों का जो 2013 से आँख में पट्टी और कान में रुई लगा कर सो रहे थे।
जनाब पूरा रायता केवल मोर्चे के कारण फैला था हे और फैलेगा। इसी के विपरीत यदि आप अपने ज्ञान का उपयोग करें तो आप तुलना करके देखें जैसे जैसे आस पर मोर्चा हावी होते जा रहा था वैसे वैसे सी एम् महोदय का बात करने का तरीका भी बदल रहा था।
अब फिर मोर्चा बन गया जवाब में लेटर आपके सामने हैं।
अब जो सवाल जवाब करना हे मोर्चा से कीजिये और उनका तकनिकी ज्ञान टटोलिये।
और अंत में ये ज्ञात हो की जब जब भरत पटेल ने भोपाल पहोचने का आह्वाहन किया तब तब सी एम् ऑफिस से वार्ता के लिए फोन आया।
और अभी भी ऐसा ही होगा की अगर विसंगति हुई तो भरत पटेल और मोर्चा के आह्वाहन की करलिजियेगा तुलना। आस ने बिना विसंगति के छटवे वेतनमान दिलाने का मिशन रखा था जो हर हाल में पूरा किया जाएगा। मोर्चा साथ हो या न हो।
जय आस
याद रखना भाइयों आस का किसी भी मोर्चा आदि से कोई वास्ता नहीं ,
कोई आजादपंथी मोर्चा वालों से नजदीकियां ना बढ़ाए
यदि ऐसा हुआ तो प्रांतीय/सम्भागीय नेतृत्व तत्काल उचित कार्यवाही करेगा l
ये सभी पायलट प्रोजेक्ट के हिस्सेदार उस समय कहां गये थे |जब कोई इन समस्त शाने समझदार अध्यापक नेताओ को भेरूलाल बनाकर विधायक का टिकट ले आया |
और दूसरी बात विसंगती की तो ये भी 2013 ही हुई थी जब तुम सब मालाये पहनकर आभार प्रकट करते फिर रहे थे |उस वक्त तुम्हारे दिमाग मे गोबर भर गया था क्या |जो सबके मसिहा बनकर मुख्यमंत्री के समक्ष पेन गुमाकर हस्ताक्षर कर दिये उस दिन क्या मोतियाबिन्द का आपरेशन करवा कर सिधे सी.एम. के पास पहुंच गये थे क्या....????
तुम समस्त संघो के नेता वहा मौजूद थे , तो क्या वहां तालियां बजाने गये थे ,जो विसंगतियुक्त आदेश लेकर चले आये |
और हां बात करते हैं भरत पटेल जी के बारे मे तो इस व्यक्ति ने अभी संघ बनाया जो पाप आप लोगो ने किये उन्हे धोने के लिए |और यह कहना कि ये जिम्मेदारी भरत पटेल कि होगी कि विसंगति रहित आदेश होना चाहिये , तो वो भी तैयार हैं | सरकार को झुकाने का दम भी रखता है |तुम लोग बैठो ओर आम अध्यापक भरत पटेल के साथ खड़ा है |
जब 15साल तक नही मिला तो हम चुप थे ओर 2-3 महीनों मे कुछ नही बिगड़ रहा है |
लेकिन हम हमारा नेतृत्व उन लोगो को कभी नही सौंपेगें जो पहले ही भगोड़े साबित हो चुके है |
जय आजाद
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