साथियों कुछ दिनों से देखने मे आया है कि अध्यापक हित मे बहुत से संघ संयुक्त मोर्चे पर जोर दे रहे है! यह एक सार्थक सोच है ! यह जरूरी भी है! हम सब के हितों के लिए एकता परम आवश्यक है!!
परन्तु जहॉ तहॉ हर सिक्के के दो पहलू नजर आ रहे है, एक ओर तो महान लोग हम जैसे मामूली अध्यापकों के मसीहा बनकर राजनीति कर रहे है और एकता की बात कर रहे है!
दूसरी ओर अपनी एवं अपने अपने संघ की महानता का ढोल पीट रहे है !! स्वयं को हितैषी और दूसरे को हितो के विरोधी बता रहे है और एकता का रोना रो रहे है , क्या इस तरह एकता मुमकिन है !
वर्तमान मे एकता का एकमात्र तरीका है और वह है चुनाव क्या किसी संघ मे यह भावना है कि इस बात पर अमल कर सके !! या इस चुनौती को स्वीकार कर चुनावी प्रक्रिया से गुजरें जिसमे साधारण साथी मतदान करें!!
शायद कोई भी संघ इसके लिए आगे नही आयेगा क्योकि इससे स्वत: कई संघों का वजूद स्वाहा हो जायेगा !!
बाकी एकता का ढिढोंरा और आपसी आरोप प्रत्यारोप जारी रहेगा क्योकि यही तो हाईलाईट होने का आखिरी एवं सटीक रास्ता है !!
यह काम आसान भी है जो हर दिन किया जा रहा है !!!
S.R.Vishvkarma
"समाधान टीम"
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