जब से तथाकथित संविदा हितेषी संघ ने मांग पत्र मै संविदा शिक्षकों की पीड़ा हासिये पर पटक दी थी । तभी से संविदा शिक्षक खुद के साथ हुऐ दोहरे रवैये का विरोध करता रहा है।
छटवे वेतनमान की चाह मै अपने छोटे भाई बहनो की पीडा को किस कदर अनदेखा किया , की आज तीन - तीन माह से बिना वेतन गुजारा करने वाले संविदा भाईयो से इन्हे कोई सरोकार नही।🤔🤔🤔🤔🤔यही नही बार बार संविदा शिक्षकों के विरोध को भी अनुचित साबित कर उन्हें भुगतने की हिदायत भी दी जाती रही।संविदा के तथाकथित नेता को पद देकर समझा जाता रहा है की संविदा भाई बहन सन्तुष्ट हो आपके दोहरे मापदंडो मै साथ देते रहेंगे तो निश्चित ही ये भूल होगी । छटवे वेतन मान के आदेश की प्रतिक्षा के समय जब संविदा शिक्षक ने अपनी बात रखने का निवेदन किया था तो तथाकथीत संविदा हितेषी महानुभाव ने चेतावनी भरे लहजे मै कहा था कि यदि आदेश मै संविदा शिक्षक के लिए कुछ अच्छा आ गया तो चुपचाप मेरी मित्रसूची संविदा शिक्षक बहार हो जाये।
अब वो शेर ( मिट्टी के ) की दहाड सुनाई नही देती,ओर कितने रंग देखने के बाद हम संविदा शिक्षक अपने हक के लिए उठ खडे होंगे और कितना समय चाहिए हम संविदा शिक्षकों को ये समझने के लिऐ की हमे अपनी लड़ाई खुद ही लडनी है । जितना योगदान हम संविदा शिक्षकों ने 2015 के आन्दोलन मै अध्यापक हित दिया इससे आधा योगदान भी यदि संविदा साथी अपने खुद के संघर्ष के लिए देदे तो निश्चित ही संविदा शिक्षक अपने संघर्ष मै विजेता घोषित होगा।
कमाल का साहस है अल्पसंख्या मै होने के बाद भी गुरूजी भाईयो ने अपना संघर्ष लडा ही नही बल्कि जीता भी, और संविदा बन के रहे। संविदा शिक्षक की पीडा को उनका भाग्य बता के भुगतने की सलाह देने वाले साथियों की कमी नही है। सोशल मीडिया पर संविदा साथी को हर प्रकार से प्रश्न चिन्ह लगाये जाते है कभी हमारे अनुभव को लेके, कभी हमारी उम्र को लेकर ,कभी हमारे विवेक के लिए, कभी हमारे योगदान को लेकर, किन्तु साहस और दृढता, इन बातो की मोहताज नही होती। अशोक, धु्व , र्प्रहलाद और ना जाने ऐसे कितने उदाहरण है जिनसे इतिहास भरा पडा है। संविदा साथी एक बार खुद के लिए संघर्ष करे, अपने अदम्य साहस का परिचय दुनिया को दे। जो ओरो की जीत का मुख्य कारण बन सकते वो खुद भी क्यों नही जीत सकते
संविदा की पीडा वो ही जान पायेंगे जो खुद संविदा हो वो नही जो आपकी बात तक प्राथमिकता से नही रख सकते।
कु राशी राठौर देवास
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