मन की बात
सभी साथियो को सादर नमस्कार
कृपया जरूर पढे।
साथियो पिछले दिनों से व्हाट्सऐप एवम् फ़ेसबुक पर अध्यापको के हो रहे निरर्थक वादविवाद को देखकर अंतरात्मा ने झकझोर के रख दिया।इस तरह अपशब्दों का नंगा नाच मेने आज तक नही देखा वो भी एक अध्यापक का दूसरे अध्यापक भाई के लिए।
अधिकांश साथी जो किसी न किसी संघ से जुड़े हुए है वो अपने अपने संघो से कुछ इस तरह वफादारी निभाना चाहते है की अन्य संघो व साथियो को गाली देने व अपशब्दों के प्रयोग से भी स्वयं को नही बचा प् रहे।
ऐसे संघो का क्या फायदा जो अध्यापको को एक करने की बजाय आपसी वैमनस्यता का कारण बने।
में कहता हु हमे ऐसे सभी संघो से त्याग पत्र दे देना चाहिए जो की अध्यापक एकता व् अध्यापक हित में बाधक सिद्ध हो रहे है।
साथियो अपने पद अध्यापक होने की गरिमा का ध्यान रखते हुए।इस बात पर अवश्य विचार करे
संघवाद को हावी ना होने दे।
"संघ बाद में पहले हम सभी अध्यापक है"।
ये मेरे अंतर्मन की आवाज है पिछले कुछ दिनों से मेरे व्हाट्स अप पर पोस्ट ना करने कारण यही है अध्यापको की सोच व मानसिकता का गिरता हुआ स्तर।
अंत में आप सभी साथियो से केवल इतना ही निवेदन करना चाहूँगा की अपशब्दों का प्रयोग न करे आपसी मन मुटावसे बचे।
""ऐसी वाणी बोलिये मन का आप खोय।
औरन को शीतल करे आपहू शीतल होय।।""
""कागा किसका धन हरे और कोयल किसको देय।
मीठी वाणी बोलिके जग अपनों करी लेय।।""
आपका साथी
नरेंद्र शर्मा
मुरैना चम्बल
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