राज्य अध्यापक संघ मध्यप्रदेश
जगदीश यादव प्रांताध्यक्ष ,राज्य अध्यापक संघ की कलम से
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सरकार को चुनौती दी तभी जीते अध्यापक
अध्यापक संगठनों के नेताओं के बीच सोशल मीडिया पर जानते समझते हुए भी एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का अभियान सा छिड़ा हुआ है, जिसमें हासिल सिर्फ वेतन विसंगतियों से भरा हुआ आदेश ही हाथ लगेगा। एक दूसरे से श्रेष्ट एवं काबिल साबित करने के इस अभियान में आम अध्यापक कहां है? यह सवाल भी सोशल मीडिया पर आम अध्यापकों द्वारा पूछा जा रहा है, जिसका ठीक से जबाव तक नहीं दिया जा रहा है। कोई सारे संगठनों को भंग कर उनके नेताओं को घर बैठ जाने की सलाह देते हुए कह रहा है कि एक दिन के लिए हमारे साथ आ जाओ, कुछ ही मिनटों में आर्डर हाथ में दे देंगे। यह ठीक वैसा ही उद्घोष है जैसा 2014 से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सभाओं में किया करते थे। वेतन विसंगति की समस्या से जूझ रहे छोटे कर्मचारियों ने मोदीजी को इसलिए पसंद किया था कि वे इस समस्या को समाप्त कर अच्छे दिनों ला देंगे, जैसा कि उन्होंने वादा किया था। क्या आए अच्छे दिन? नहीं। आपसी झगड़े में एक बात समझ लेनी चाहिए कि सरकार भीड़ से नहीं डरती? यदि सरकार भीड़ से डरती तो वह 5-10 लाख की रैलियां नहीं करती। इसके बाद भी यदि किसी को यह गलत फहमी हो कि सभी 4 लाख अध्यापक उसके पीछे आ जाएं तो वह इन्हें समस्याविहीन कर देगा, इसे उसकी नासमझी ही माना जाएगा। इस तरह के तर्क तभी दिए जाते हैं, जब व्यक्ति नेतृत्व करने में अक्षम साबित हो जाता है और अक्षम नेतृत्व कभी भी संघर्षों को जीत तक नहीं पहुंचा सकत, यह बात बीते तीन साल की असमंजस की स्थिति से साफ हो चुकी है। अध्यापक जीतेंगे और तभी जीतेंगे जब वे शिक्षाकर्मियों की तरह सरकार के लिए चुनौती बनेंगे, यह काम अध्यापकों के बीच चल रहे अलग-अलग संगठनों के अभियानों के जरिए किया जा रहा है, इससे शिक्षा विभाग में संविलियन की लड़ाई को ताकत भी मिल रही है। चूंकि अध्यापकों का भविष्य में कभी भी होने वाला आंदोलन निर्णायक और अंतिम संघर्ष होगा, इसीलिए इसमें सबसे ऊपर शिक्षा विभाग को बचाने और उसमें अध्यापकों को ले जाने की मांग होगी, जिसे शिक्षा विभाग की समूची विरादरी का समर्थन भी हासिल होगा, इसीलिए इसमें जीत की ज्यादा संभावना नजर आती हैं।
शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ राज्य अध्यापक संघ के अध्यक्ष जगदीश यादव के नेतृत्व में चल रहे अभियान में जो मांगें उभरकर सामने आ रही हैं, उनमें पहली और महत्वपूर्ण मांग 10वीं तक निजी स्कूलों को मान्यता देना बंद किया जाना चाहिए और जिन्हें मान्यता दी गई है, उसे भी समाप्त किया जाना चाहिए? यह ऐसी मांग है जिसके पूरा होने पर सरकारी स्कूलों में छात्रों की संख्या अपने आप बढ़ जाएगी। शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ विकसित हो रहा आंदोलन इसी एक मांग के इर्द गिर्द विकसित हो रहा है, जिसे जीतना अध्यापकों की न सिर्फ जरूरत है बल्कि खुद के एवं परिवार के भविष्य के लिए इसे जीतना ही होगा और इसमें तभी जीत हासिल हो सकती है, जब वे शिक्षाकर्मियों की तरह जीतने के लिए ही लड़ें। परिस्थितियां उन्हें ऐसा करने के लिए तैयार भी कर रही हैं। शायद इसीलिए राज्य अध्यापक संघ के जगदीश यादव कहते हैं कि हमारे लिए जितना जरूरी छठवें वेतनमान का आदेश है, उतना ही जरूरी शिक्षा का निजीकरण रोकना भी है और यह तभी संभव है, जब स्कूली शिक्षा पूरी तरह सरकार के नियंत्रण में रहे और इसके लिए जरूरी है कि कम से कम 10वीं तक कोई निजी स्कूल न खोला जाए और जो खुल चुके हैं उनकी मान्यता समाप्त की जाए। अपने भाषणों में दर्शन सिंह कहते हैं कि इस लड़ाई को जीतने के लिए हमें शिक्षाकर्मियों वाले तेवरों में आना पड़ेगा, हमें सरकार के लिए चुनौती बनना होगा, जिस तरह शिक्षाकर्मी रहते हुए सरकार को चुनौती दी थी, वैसी ही चुनौती अब शिक्षा विभाग को बचाने और उसमें संविलियन के लिए देनी होगी। शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान की सभाओं में दर्शन सिंह स्पष्ट करते हैं कि हमारी तरह सताए हुए कर्मचारी हर विभाग में हैं, इन सभी की समस्या भी एक जैसी है, सभी सरकारी कर्मचारी का दर्जा हासिल कर अपने-अपने मूल विभाग में जाने की लड़ाई लड़ रहे हैं, इसीलिए इस लड़ाई को व्यापक स्तर पर लडऩे और जीतने की दिशा में अब सोचना ही होगा।
धन्यवाद
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आप का जगदीश यादव
सौजन्य से -
आई टी सेल राज्य अध्यापक संघ मध्यप्रदेश।
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