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शिक्षा क्रान्ति यात्रा क्यों ?- भाग 3: सुरेश यादव

Monday, 21 March 2016

साथियों मैने पहले 2 अंक मे बताया था की राज्य अध्यापक संघ की यह पाँचवी यात्रा है,हमने हमेशा कहा है की यह सिर्फ हमारे वेतन भत्तो की लाड़ाई  नहीं समाज हित की लडाई है ।मैने  विश्व के अन्य विकसित और विकासशील देशो में शिक्षा वयवस्था के बारे में भी जानकारी प्रदान की थी ।

      आज हम उस से आगे बढ़ते हुए आप को बतायेंगे की किस प्रकार देश की सरकारी शिक्षा  को बर्बाद करने की भूमिका तैयार की गयी और शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में आमिर और गरीब के बिच खाई  तैयार की गई और उसे किस प्रकार बढ़ाया गया ।

सर्व प्रथम 1984-85 में देश में शिक्षा विभाग के मंत्रालय को बंद कर के उसका नाम मानव संसाधान विकास मंत्रालय किया गया ।
       
फिर वैश्वीकरण व नवउदारवाद का दौर आया ,जिसमे 73 वे और 74 वे संविधान संशोधन के माध्यम से शिक्षा को ,सरकार के हाथ से लेकर स्थानीय निकायों के हाथो में सौंप दिया गया ,इस संविधान संशोधन ने तो जैसे सरकार को शिक्षको के शोषण का अधिकार दे दिया ।पुरे देश में कम वेतन और बिना किसी सुविधा के शिक्षकों की भर्ती की जाने लगी ।इस प्रकार नियुक्त शिक्षकों को भविष्य के प्रति भी  सुरक्षा का कोई आश्वाशन नहीं दिया जाता।

इसी दौरान निजी विद्यालय भी बनाये जाने लगे और नियमो में शिथिलता के कारण उनकी संख्यां बढ़ने लगी,अब तो व्यक्ति की आय के अनुसार विद्यालय होने लगे है ।

फिर आया शिक्षा का अधिकार अधिनियम अब यह तो ऊपर वाला ही जाने यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम था या सरकारी विद्यालयो को बंद करने का अधिनियम ,इसकी एक विशेषता रही है की इसमें भी शिक्षको की सुविधाओ या अधिकार का कोई उल्लेख नही है । इसके उलट विद्यालय से 25 प्रतिशत छात्र जरूर निजी विद्यालयो में भेजे जाने लगे ।परिणाम यह हुआ की प्रत्येक वर्ष शिक्षको का युक्तियुक्तकरण होने लगा ।यही नहीं युक्तियुक्तकरण के नाम पर विद्यालयो को भी बन्द किया जाने लगा ।अब तक प्रदेश में ही 4000 से ज्यादा विद्यालयो का युक्तियुक्त करण हो गया है और वर्तमान सत्र में 10000 विद्यालय 20 से कम दर्ज संख्या के हो गए है ।

आज के नईदुनिया में एक रिपोर्ट  प्रकाशित हुई है ,इस पोस्ट के साथ भेज रहा हूँ । शिर्षक है ,"हाजिरी नहीं बढ़ी मध्यान्ह भोजन से" कुछ अनियमित भुगतान का भी उल्लेख है ।
यह समाचार कैग की रिपोर्ट पर है , जिसमे बताया गया है की 2010-11 में प्रदेश में माध्यमिक स्तर तक 1 करोड़ 11 लाख छात्र अध्ययनरत थे और 2014-15 में 92 लाख 51 हजार रह गए । वंही  निजी विद्यालयो में इसी दौरान 38 प्रतिशत नामांकन बड़ा है ।

कैग (नियंत्रक महा लेखा परिक्षक) की यह रिपोर्ट है तो मध्यान्ह भोजन के संदर्भ में लेकिन एक बहुत बड़ी सच्चाई हमारे  सामने लाती  है । अगर हम देखें तो 2011-12 से 25 प्रतिशत छात्रो को निजी विद्यालय में भर्ती करने का अभियान शुरू हुआ है ।हम राज्य सरकार के वर्तमान बजट को उठा कर देखें तो सब कुछ स्पष्ठ हो जाएगा ,इस बजट तक 8 लाख छात्रो को निजी विद्यालयो में दर्ज करवाया गया है ।साथ ही सरकार स्वयं स्वीकार कर चुकी है की प्रत्येक बच्चे की शाला के साथ मेपिंग में भी 12 या 13 लाख बच्चे कम हुए है या दोहरी मेपिंग के पाये गए है ।साथियों स्मरण रहे आगमी सत्र में राज्य सरकार ने 9 लाख 50 हजार बच्चों की फ़ीस का भुगतान करके निजी विद्यालयो में भेजने का लक्ष्य रखा है ।इसके लिए 300 करोड़ रूपये का बजट में प्रावधान किया गया है ।
   
   यह मेरे नहीं सरकारी आंकड़े हैं ।इन्ही आंकड़ो से सरकार विभाग को और हमें बदनाम कर रही है । शिक्षा क्रान्ति यात्रा में हम इन्ही मुद्दों को सभी साथियों के बिच पहुंचा रहे हैं ।

साथियो अगले भाग में  समान पाठ्यक्रम और अनुतीर्ण नहीं करने की निति पर चर्चा की जाएगी।
धन्यवाद
आप का
सुरेश यादव
कार्यकारी जिलाध्यक्ष
राज्य अध्यापक संघ
जिला रतलाम

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