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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर सभी ने दि शुभकामनाये : अध्यापक वेब

Wednesday, 9 March 2016

Mamta Singh:
महिला दिवस पर नारी शक्ति को कोटी कोटी प्रणाम...
जय शंकर प्रसाद की सबसे लोकप्रिय कविता स्मरण में आ रही है,

अनेकों-अनेकों प्रणामों के साथ .....
प्रसाद की इस कविता का मर्म अद्वितीय है......

"फूलों की कोमल पंखुडियाँ
बिखरें जिसके अभिनंदन में।
मकरंद मिलाती हों अपना
स्वागत के कुंकुम चंदन में।

कोमल किसलय मर्मर-रव-से
जिसका जयघोष सुनाते हों।
जिसमें दुख-सुख मिलकर
मन के उत्सव आनंद मनाते हों।

उज्ज्वल वरदान चेतना का
सौंदर्य जिसे सब कहते हैं।
जिसमें अनंत अभिलाषा के
सपने सब जगते रहते हैं।

मैं उसी चपल की धात्री हूँ
गौरव महिमा हूँ सिखलाती।
ठोकर जो लगने वाली है
उसको धीरे से समझाती।

मैं देव-सृष्टि की रति-रानी
निज पंचबाण से वंचित हो।
बन आवर्जना-मूर्त्ति दीना
अपनी अतृप्ति-सी संचित हो।

अवशिष्ट रह गई अनुभव में
अपनी अतीत असफलता-सी।
लीला विलास की खेद-भरी
अवसादमयी श्रम-दलिता-सी।

मैं रति की प्रतिकृति लज्जा हूँ
मैं शालीनता सिखाती हूँ।
मतवाली सुंदरता पग में
नूपुर सी लिपट मनाती हूँ।

लाली बन सरल कपोलों में
आँखों में अंजन सी लगती।
कुंचित अलकों सी घुंघराली
मन की मरोर बनकर जगती।

चंचल किशोर सुंदरता की
मैं करती रहती रखवाली।
मैं वह हलकी सी मसलन हूँ
जो बनती कानों की लाली।"

"हाँ, ठीक, परंतु बताओगी
मेरे जीवन का पथ क्या है?
इस निविड़ निशा में संसृति की
आलोकमयी रेखा क्या है?

यह आज समझ तो पाई हूँ
मैं दुर्बलता में नारी हूँ।
अवयव की सुंदर कोमलता
लेकर मैं सबसे हारी हूँ।

पर मन भी क्यों इतना ढीला
अपना ही होता जाता है,
घनश्याम-खंड-सी आँखों में
क्यों सहसा जल भर आता है?

सर्वस्व-समर्पण करने की
विश्वास-महा-तरू-छाया में।
चुपचाप पड़ी रहने की क्यों
ममता जगती है माया में?

छायापथ में तारक-द्युति सी
झिलमिल करने की मधु-लीला।
अभिनय करती क्यों इस मन में
कोमल निरीहता श्रम-शीला?

निस्संबल होकर तिरती हूँ
इस मानस की गहराई में।
चाहती नहीं जागरण कभी
सपने की इस सुधराई में।

नारी जीवन का चित्र यही, क्या?
विकल रंग भर देती हो,
अस्फुट रेखा की सीमा में
आकार कला को देती हो।

रूकती हूँ और ठहरती हूँ
पर सोच-विचार न कर सकती।
पगली सी कोई अंतर में
बैठी जैसे अनुदिन बकती।

मैं जब भी तोलने का करती
उपचार स्वयं तुल जाती हूँ।
भुजलता फँसा कर नर-तरु से
झूले सी झोंके खाती हूँ।

इस अर्पण में कुछ और नहीं
केवल उत्सर्ग छलकता है।
मैं दे दूँ और न फिर कुछ लूँ
इतना ही सरल झलकता है।"

"क्या कहती हो ठहरो नारी!
संकल्प अश्रु-जल-से-अपने।
तुम दान कर चुकी पहले ही
जीवन के सोने-से सपने।

नारी! तुम केवल श्रद्धा हो
विश्वास-रजत-नग पगतल में।
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो
जीवन के सुंदर समतल में।

देवों की विजय, दानवों की
हारों का होता-युद्ध रहा।
संघर्ष सदा उर-अंतर में जीवित
रह नित्य-विरूद्ध रहा।

आँसू से भींगे अंचल पर
मन का सब कुछ रखना होगा-
तुमको अपनी स्मित रेखा से
यह संधिपत्र लिखना होगा।

Isar Ahmad Quresi :

ये औरत है बदलते वक़्त की बदली ज़रूरत है ।
पुराना पड़ गया तो क्या मुहब्बत में लिखा ख़त है ।
कभी वालिद बनो इसके कभी माँ मान लो इसको
तो उस आँगन में बरक़त है यहाँ कदमो में जन्नत है।

वफ़ा के सात पर्दो में हरिक ख़्वाहिश छुपाती है
सितम होते रहे इस पर मगर ये मुस्कुराती है।
कभी किस्मत के कोड़े हैं कभी हालात के चाबुक
मगर दहलीज़ की ख़ातिर वो हर ग़म भूल जाती है।

सजा कर घर की दीवारें इसी मन्दिर में रहती है।
पड़े जो वक़्त मुश्क़िल का फ़टी चादर में रहती है।
कमा सकती है बेशक़ वो भी अपने इल्म के दम पर
मगर उसकी अना के वास्ते वो घर में रहती है।

मगर क्या जुल्म को सहना ही औरत का मुक़द्दर है ?
इसेमिलती नही दुनिया फ़क़त कोना मयस्सर है ।
अजब सी इस रवायत से महज़ औरत ही वाक़ीफ़ है
जो सब कहते है के ' इस दौर में हम तुम बराबर है '।

परिंदों की तरह भीतर बहुत वो छटपटायेगी
उसे परवाज़ दोगे तो बुलन्दी छू के आएगी
पुरुष की कामयाबी का ही दूजा रूप है औरत
मुहब्बत के भरोसे से न हरगिज़ दूर जायेगी ।

ख़ुदाया !! अबकि फुर्सत से नई तक़दीर लिख देना
न हो पैरों में इसके जुल्म की जंज़ीर , लिख देना
इसे दुनिया में लाये हो तो फिर दुनिया में जीने दो
उजालो के हदों की इक नई तहरीर लिख देना ।

Siyaram Patel
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की आप सभी मातृशक्ति को हार्दिक शुभकामनाएं......

जीवन की कला को अपने हाथों से साकार कर नारी ने सभ्यता और संस्कृति का रूप निखारा है, नारी का अस्तित्व ही सुन्दर जीवन का आधार है|

स्त्री की उन्नति या अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्भर है|

महिलाएं संवेदनशील होती हैं.वे हर छोटी से छोटी चीज के बारे में आवश्यकता से अधिक सोचती हैं. वे जितनी देखभाल कर सकती हैं उससे अधिक ही करती हैं , लेकिन ये ही है जो उनके प्रेम को इतना अधिक गहरा बनाता है.
💐मातृशक्ति को सादर समर्पित💐

ए औरत तुझे क्या कहु तेरी हर
बात निराली है, तू एक ऐसा पौधा
है जिस घर रहे वह हरियाली
ही हरियाली है, तेरी शान में
सिर्फ इतना कह सकते हैं, तेरी
ऊंचाइयों के सामने आसमान भी
नहीं रह सकता है, मेरा सिर्फ
इतना सा एक पैगाम है, ए औरत
तुझे मेरा सर झुका कर सलाम है....
Siyaram Patel :
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मातृशक्ति को समर्पित

अध्यापक कांग्रेस मध्यप्रदेश
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अध्यापक कांग्रेस मध्यप्रदेश,  08 मार्च 2016,  महिला दिवस के अवसर नारी शक्ति के पावन अवसर पर नमन, वंदन, अभिनंदन।
प्रदेश की महिला शक्ति को नमन।
,  जिस राष्ट्र और, समाज   ,  और घर में नारी की पूजा होती है वहाँ  देवता निवास करते हैं,  एवं राष्ट्र और समाज सदैव ही प्रगतिशील होता है,
नमन,  नमन, नमन
- राजीव पाठक
(प्रांतीय सचिव)
अध्यापक कांग्रेस मध्यप्रदेश

SR Vishwakarma:
तुम निश्छल निस्वार्थ भाव से,
मेरा ऑगन सजाये जाती हो!!
हर बार वक्त वेवक्त,
त्याग पर त्याग किये जाती हो!!
मैं कितना मगरूर हू ,
अपनी नरता के घमंड मे,
चला रहा हू तेरी दुनियॉ,
जीता रहा हू इसी दंभ मे,
एक तुम हो जो लुटा के पहचान,
मेरी पहचान बनाये जाती हो!!
मैने तो हर दम रोका है तुझे,
रीतियों और प्रथाओं के नाम पर,
मै छीनता रहा तेरी स्वछ्न्दता,
तुम बिठाती रही मुझे हँसी मकाम पर,
रूकना तो क्या मै ढिठका भी नही तेरे लिए,
एक तुम हो जो तमाम उम्र दिये जाती हो!!
🍀🍀जय हो🍀🍀
महिला दिवस की जरूरत न होती ,
गर हम पर पुरूषता हावी न होती!!

Happy international women's day

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