परम् आदरणीय आम अध्यापक साथियो,
न आस, न शास,न रास।
हम कैसे करें विस्वास।।
1. स्थांतरण नीति लागू होने पर सरकार पर कितने हजार करोड़ का वित्तीय भार आने वाला है???
हमारे साथी 5000 रूपये में अन्य जिलों में सर्विस कर रहे हैं। माता-पिता,परिवार से दूर है।आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं।
अपने गृह जिले में भी 50 से 200 KM का सफर प्रतिदिन तय करके नौकरी कर रहे हैं। 5000 रु में मुख्यालय पर भी नही रह सकते।
लेकिन आम अध्यापकों की यह पीड़ा कौन समझ रहा है?????
क्या सरकार समझ रही????क्या किसी संघ का प्रांतीय नेतृत्व समझ रहा है????
साथियो,सरकार क्यों समझे? जब हमारा प्रांतीय नेतृत्व ही हमें हमेशा गुमराह करता आ रहा है।
हर बार आंदोलन करे आम अध्यापक और फिर उसके साथ खिलवाड़ कर उसे ही ठगा जाये।आखिर क्यों??
हर एक आंदोलन के बाद सरकार की वाहवाही,बन्दना ये सब कहाँ तक उचित है।क्या हम आजीवन(रिटायरमेंट तक) आंदोलित ही रहेंगे????
सरकार पर दवाब क्यों नहीं बन रहा??सरकार क्यों निश्चिन्त है। आखिर दोषी कौन???
इसके दोषी, सिर्फ और सिर्फ आप,हम सब आम अध्यापक हैं।
1. क्या हमें अपनी जिला कार्यकारणी पर दवाब नहीं बनाना चाहिए???
2. क्या जिला कार्यकारणी को सम्भाग व प्रदेश नेतृत्व पर दवाब नहीं बनाना चाहिए???
3.क्या प्रदेश नेतृत्व को सरकार दवाब नहीं बनाना चाहिए???
कमी सिर्फ आम अध्यापकों के दवाब की है।क्यों हम सब अपनी अन्य मागें पूरी होने से पूर्व ही अपने नेतृत्व के हर उस आवाहन पर झंडे,बैनर लेकर चल पड़ते हैं???
क्या फेसबुक और व्हाट्सअप पर सिर्फ पदाधिकारी ही हैं??आम अध्यापक नहीं हैं? ??जिन्हें वास्तव में तत्काल उस आवाहन का विरोध करना चाहिए जो आम अध्यापकों के हित में न हो।
6वाँ वेतनमान मिला नहीं, वाहवाही लेने में कमी नही,ये सरासर राजनीति है। आस भी उसी डगर पर है, जिस पर कभी रास थी और हम आम अध्यापकों प्रदेश के सभी जिले के आस कार्यकर्ता ऐसे ख़ुशी मना रहे हैं जैसे सरकार ने हमें वह सब कुछ दे दिया जो हमने मांगा था।
अब 5 मार्च को हमें प्रांतीय नेतृत्व के आवाहन पर CM का जन्मदिन मनाना है क्योंकि प्रदेश की हर जिला कार्यकारणी ने भी हाँ में हाँ मिलाकर वही आवाहन कर दिया है ऐसे जैसे प्रांतीय नेतृत्व,हमारी सब मांगें पूरी कराकर अब प्रदेश के मंत्री मण्डल में शामिल होगा और जिला कार्यकारणी सदस्य विधायक बन जायेंगे।
चापलूसी की पराकाष्टा सब पदाधिकारी पार कर रहे हैं।
जागो आम अध्यापक और जिला स्तर पर समझाइस दें की कहीं ऐसा न हो जैसा रास ने 2013 में किया।
उस समय भी हमारी प्रदेश नेतृत्व के प्रति वाहवाही /चापलूसी के परिणाम स्वरूप ही हमारा सौदा हुआ कोई विधायक बना और हम ठगे गए जिसे हम अभी तक भुगत रहे हैं।
अब हम ख़ुशी तभी मनायेंगे, तभी झंडा ,बैनर उठायेंगे, जब 6वाँ वेतनमान के साथ साथ हमारी शेष लम्बित मांगों के लिए, सभी संघ एक जुट होकर, एक मंच पर से, आर पार की लड़ाई का आवाहन करेंगे।
किसी भी संघ को निरंकुश न होने देने में ही आम अध्यापकों का हित है।
दिल पर हाँथ रखकर,अपना जमीर ,स्वाभिमान व अध्यापकों के हित को ध्यान में रखकर कमेन्ट अवश्य करें।
स्वार्थी कमेन्ट करने से दूर रहें।
साथियो ,
आज मुझे संघ की एक बात बार बार आहत कर रही है कि 6वाँ वेतनमान अभी अपना पहला पड़ाव है और अभी हमें अन्य मांगों जैसे संविलियन,ट्रांसफर नीति, AEO नियुक्ति,7वाँ वेतनमान, फेल गुरूजी प्रकरण,आदि के लिए फिर से आंदोलन करना होगा।
आखिर क्यों????
एक बात समझ से परे है कि हम बार बार आंदोलन क्यों करें???
6वाँ वेतनमान के साथ अन्य मांगें पूरी करने के लिए आंदोलित रहने में क्या बुराई थी।
इन माँगों के लिए बजट की भी आवश्यकता नही थी।
एक मांग पूरी भी नही हुई कि सरकार को बधाई देना शुरू कर दिया।
क्या इससे अध्यापकों का भला हो रहा है??? या अध्यापकों को गुमराह कर बार बार आंदोलन करके अपनी राजनीति कर सुर्ख़ियों रहना चाहते है????
न आस, न शास,न रास हम कैसे करें विस्वास : डि के त्रिपाठी
Friday, 4 March 2016
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