साथियों
सादर वंदे,
साथियों आज हम सबको छटवां वेतन जनवरी 2016 से मिल गया है।
चूँकि अभी गणना पत्रक नहीं आया है परंतु यह तो तय हो ही गया है कि अध्यापक संवर्ग को छठा वेतन मिलेगा।
जिसके शासन स्तर पर आदेश भी हो गए हैं।
साथियों जो वेतन हमें मिलने वाला है उस पर दावा किया जा रहा है और आरोप लगाया जा रहा है कि 2013 से सब सोये हुए थे।और 2013 का आंदोलन बेचने का आरोप भी तथाकथित लोगों द्वारा लगाया जा रहा है।
साथियों दर्द वो जनता है जिसने उसे भोगा है ।जिसने सहा है ।दूर से देखने वाला तो यही कहता है कि सब बहाने हैं।
यद् करो 1995 की दास्ताँ जो आज भी रोंगटे खड़े कर देती है।पर कहते है हिम्मत बड़े से बड़े काम करा देती है। हमने हिम्मत नहीं हारी और लगे रहे।1995 के साथी ये पूरी दास्ताँ जानते है।
साथियों 1998 की पुनः शिक्षाकर्मी भर्ती की वह जीत एक नीव का पत्थर बनीं जिस पर 2016 तक का यह विराट महल खड़ा हुआ है।
यह वह लड़ाई थी साथियों जिसका वर्णन करना भी कठिन है।आज आंदोलन के लिए भूख हड़ताल करते हैं।पर उस समय तो भूखे रहकर ही भोपाल में आंदोलन करना होता था।
हजारों शिक्षाकर्मी साथी इसके गवाह है जिन्होनें भोपाल की सड़कों पर वास्तव में चने फुटाने खाकर आंदोलन किये।
परंतु मन में सफलता का संकल्प लेकर हम सब आगे बढे और शिक्षाकर्मी नियमितीकरण का एक और मील का पत्थर इस राह का हमसफर बना।
साथियों बहुत ही अल्प वेतन में जिसकी आप वर्तमान समय में कल्पना भी नहीं कर सकते है।हमने अपना रास्ता तय किया।
लगातार लड़ना हमारी नियति हो गई थी और ऐसे ऐतिहासिक आंदोलन उस समय हो गए जो शायद कर्मचारी जगत में अब कभी हो ही नहीं सकते।
देश की राजधानी दिल्ली की सड़कों पर खुले आसमान के नीचे हजारों शिक्षाकर्मी भाई एवं बहनों ने आंदोलन किया।
साथियों वक्त गवाह है कि हर मोड़ पर सफलता मिली ।ब्रजेश शर्मा ने भोपाल में आत्मदाह की घोषणा की एव निश्चित समय पर आत्मदाह का प्रयास भी किया ।
परिणाम अध्यापक संवर्ग का गठन के रूप में मिला और इस राह में एक और मील का पत्थर गड गया जिसका परिणाम आज हम सबको दिखाई दे रहा है।
साथियों इसके सफलता मिलती चली गई एक एक सीडी हम आगे बड़े और फिर एक महाआंदोलन की शुरुवात हुई जो इतना विराट था कि न चाहते हुए भी सरकार को झुकना पड़ा और 04 किस्तों में छटवें वेतनमान की घोषणा मुख्यमंत्री महोदय को करना पड़ी।
आज जो उस वक्त का गवाह नही है वो कोई भी आरोप लगा सकता है परन्तु किन परिस्थितयों में यह हुआ अगर यह देखा जाय तो यह वो मील का पत्थर है जो आज हमें छटवें वेतनमान के महल को दिखा रहा है।
साथियों यह मानने में कोई गुरेज नहीं है कि वर्तमान के आंदोलन ने हमें जो 2017 में मिलना था वह 2016 में दिलाया ।
प्रदेश का हर अध्यापक इस आंदोलन में भागीदार रहा।परंतु यह नीव 1995 में ही डल गई थी।
और वहीँ से इस भवन की शुरुवात हो चुकी थी।
आज जो कुछ है उसमें नीव के हर पत्थर का पूरा योगदान है।
दर्द जब होता है जब यह कहा जाता है कि अध्यापकों को बेचा गया। सब सो रहे थे हमने जगाया।
लड़ते लड़ते जिसकी नींद ही गईः हो उस पर सोने का आरोप लगाया जा रहा है।
हम सब सफलता का जश्न मनाएं परन्तु कुर्बानियों पर आरोप न लगाएं।
अशोक कुमार देवराले
सफलता का जश्न मनाएं परन्तु कुर्बानियों पर आरोप न लगाएं : अशोक कुमार देवराले
Friday, 4 March 2016
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