राह में ले तो आये है उनको बातो बातो में
और खुल जाएंगे दो चार मुलाकातो में
आज मप्र अध्यापक कोर कमेटी की पोस्ट आई जिसमे शिक्षा के निजीकरण को लेकर चिंता व्यक्त की गई है. जानकर प्रसन्नता हुई की इस ज्वलन्त मुद्दे को अब स्वीकार कर कम से कम विचार तो किया जा रहा है क्योकि अभी तक तो शिक्षा के निजीकरण को काल्पनिक मुद्दा बताकर नेतागिरी करने का साधन बताया जा रहा था.
एक बार फिर आम अध्यापक ने अपनी सूझबूझ और बुद्धिजीविता को साबित कर यह जता दिया की अपना अच्छा बुरा सोचने समझने और सोचने समझने वाले को पहचानने में वह पूर्णतः समर्थ है. 2013 की वेतन विसंगति को अस्वीकार करते हुए लगभग अनजान संगठन के बैनर तले महाआंदोलन भी कर सकता है तो प्रदेश की शिक्षा को बिकने से बचाने के लिए सब कुछ भुलाकर शिक्षा बचाओ यात्रा को आशातीत सफलता भी दिला सकता है.
आज जबकि शिक्षा के निजीकरण का मुद्दा अध्यापको द्वारा समझ स्वीकार कर लिया गया है अतः अब आवश्यकता इस बात की है की इस निमित्त जारी शिक्षा क्रान्ति यात्रा को सब संघ संगठन तत्काल अपना समर्थन घोषित कर बचे हुए जिलो में यात्रा को ऐसा स्वरूप देवे जिससे सरकार भी नीतिगत स्तर पर बयान देने के लिए विवश हो जाए. जितना ज्यादा इस मुद्दे को जन मानस में गहरे तक उतार पाएंगे उतनी ही जल्द सफलता मिलेंगी क्योकि जनमत की उपेक्षा कोई भी सरकार नही कर सकती. सफलता दोनों मुद्दों यथा समान कार्य समान वेतन और शिक्षा के निजीकरण पर मिलेंगी बस इसी तरह वैचारिक एकता बनाये रखे ना की विरोध के लिए विरोध के चक्कर अपने ही पैरो पर कुल्हाड़ी मारे.
रिज़वान खान
सामान्य अध्यापक
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