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श्रेय जो चाहे लेले लेकिन विंसगति रहित आदेश करवा दे : कौशल क्रांतिकारी चम्बल

Friday, 22 January 2016

सादर वंदन

मैं जानता हूं की व्यक्ति कभी सच को पंसद नही करता है क्योकि उसे डर लगता है।कि कहीं मेरा बजूद खत्म न हो जाये।लेकिन भाईयो आज में जो भाषा लिख रहा हूं।उसे देखकर शायद ऐसा प्रतीत हो कि...
"बुद्धिजीवियो को यह भाषा टेढी़ लग सकती है,
मेरी लिखने वाली भाषा हत्यारी लग सकती है"

       जो लोग पहले शेर की तरह दहाड़ते हुये कहते थे कि एक तरफ प्रदेश का अध्यापक एक तरफ प्रदेश का मुखिया होगा।आमने सामने बैठकर बात होगी।अब संयुक्त मोर्चा के बैनरतले क्यूं नही।क्या हवा निकल गई इनकी।जबकि आंदोलन दो प्रमुख मांगो के लिये किया गया था।अब तक एक भी मांग पूरी नही।आंदोलन में हमारे कुछ भाई शहीद हुये।लठ्ठ खाये।वेतन कटवाया।जेल गये।और ये वाह वाही लूट रहे है।इतना बडा़ आंदोलन लेकिन अभी मिला कुछ नही।
"अब बहुत हो गया संघर्ष,
अभी तक कुछ न निकला निष्कर्ष"
             आंदोलन स्वप्रेरित था ।हर अध्यापक का योगदान था ।प्रदेश के अध्यापको का आक्रोश था।फिर झूठी वाहवाही क्यूं।अब जंग के मैदान में आने से क्यों डर रहे है।अब पलटी क्यूं? सामने मैदान में क्यूं नही?क्या सब हेकडी़ निकल गई।
"आज जुनून में हम हर बात बता देगे,
मैदान छोड़ने वालो की औकात बता देगे"
        आज  श्रेय लेने की राजनीति।श्रेय जो चाहे लेले लेकिन विसंगति रहित आदेश करवा दे।अभी शहीदो की चिताये भी ठीक से शांत नही हुई और ये श्रेय की बाते।जो कहते थे।
"अब न फसेगे किसी की चाल में,
ईद मनायेगे भोपाल में"
             लेकिन अब समझ में नही आता भाईयो । ये कैसा समय का चक्रव्यूह है।
"ये कैसा गर्दिश का फेर,
मकडी़ के जाले में फस गया शेर"
          प्रदेश के अध्यापक नेताओ में अपने पद की महत्वाकांक्षा या पद लोलुपता जरुर दिखाई देती है।वरना अध्यापको की समस्या का अंत कभी का हो जाता ।मै कभी झूठ नही बोलता जो दिल कहे वही लिखता हूं।जो मै लिख रहा हूं वह प्रदेश के अध्यापको के दिल की धड़कन  बात है।क्योकि...
"झूठ बेबजह दलील देता है,
सच खुद अपना बकील होता है"
           आज प्रदेश का अध्यापक निराशा के भंवरजाल में ऐसा फंस गया है  जिसे चारो तरफ अंधेरा और सन्नाटा दिखाई दे रहा है।धैर्य ,विश्वास,संयम की परीक्षाये कब तक ली जाती रहेगी।तारीको पर तारीक।दिलाशाओ के दोर कब तक चलेगे।बार बार धोखा खाने के बाद भी विश्वास की बाते की जा रही है।ऊपर से छुटभैये नेताओ की अलग अलग बयानबाजी...
"आज सर चढ़कर बोल रहे पोधे जैसे लोग,
पेड़ बने खामोश खडे़ है कैसे कैसे लोग"
           उन पेड़ जैसे लोगो का खुले मंच से कोई बयानबाजी क्यो नही आ रही कि संयुक्त मोर्चा के बैनरतले मैदान ए जंग में कूदने के लिये तैयार है।अपनी ढ़पली अपना राग क्यो अलापा जा रहा है।क्या अध्यापको की समस्याओ का अंत करने का लक्ष्य नही है।तो फिर क्यूं नही एक होकर आवाज लगाते।बार बार वार्ता करके क्या मन नहीं भरा?फिर भी इनकी आंखे नही खुली।फिर भी उसी राग को अलापा जा रहा है।तो फिर क्यो नही संयुक्त मोर्चा के बैनरतले जंग का एलान करते।क्या इन्हे अध्यापक हित की चिंता नही।पर इन्हे क्या इन्हे तो अपने सम्मान की चिंता अधिक हो रही है।जो लोग सदैव सम्मान की बाते करते है तो मैं आज उनको कहूंगा कि सम्मान दो दुसरो को दुगना जो जितना चाहते हो अपने लिये, फिर देखना कैसे मिलता है तुम्हे सम्मान जिंदगी में।
           जो लोग ये कहते है कि बार बार अध्यापको को आंदोलन में ढ़केलना ठीक नही।तो मै उनको कहना चाहूंगा कि इतिहास साक्षी है कि आज तक हमको जितने टुकडे़ मिले आंदोलन से ही मिले।और हर बार के आंदोलनो में जयचंद गद्दारी नही करते तो शायद आज पुन:द्वारा आंदोलन की आवश्यकता नही पड़ती।हर आंदोलन जयचंदो ने ही असफल बनाया है नही तो अब तक एक साथ सारे अधिकार मिल गये होते।
         भाईयो हम चाणक्य के वंशज है।हमें अपने अधिकार छीनने का हुनर आता है।हम जिधर भी निकल निकल पडे़गे रास्ता हो जायेगा।चाणक्य की हिम्मत परखने की कोई गुस्ताखी न करे पहले भी हम क ई तूफानो का रुख मोड़ चुके है।जब तक तुम दोड़ने का साहस नही करोगे तब तक तुम्हारे लिये तुम्हारे अधिकार पाना सदैव असंभव सा बना रहेगा।कामयाब लोग अपने फैसले से दुनियां बदल देते है और नाकामयाब लोग दुनियां के डर से अपने फैसले बदल लेते है।हम कभी कमजोर नही पड़े है।तो फिर आज क्यूं????
"तुम याद करो दिग्गी ने भी हमारी मांगो को ठुकरा डाला,
फिर हमने भी उसका सिंहासन हिला डाला"
           आज धैर्य,विश्वास,संयम जैसे शब्दो से मोबाइल मे नेटपेक डला डला के अपनी आंखे फोड़ने के शिवाय हमारे हाथ कुछ लगा भी नही।अब बहुत हो गया अब नही रुकेगे ।
"अब कान खोलकर सुनले ,अब जंग छिडी़ तो सुनले,
अब देर न कर ,जल्दी से हमारे आदेश मंगाले,
नहीं तो अब चिंता कर हम हड़तालो से माहोल बदल देगे,
तेरी क्या हस्ती है,अब हम फैसला आर पार कर देगे"
         अब भाईयो हो जाओ तैयार मैदान ए जंग में कूदने के लिये ।बहुत हो चुकी मांग मनोती की बातें।बस अपना स्टेंड मजबूत रखो।आपकी एक वीरता पूरे जीवन को बदल देगी।आगे बढ़ने के बाद अपना पैर पीछे मत हटाना क्योकि......
"दुश्मन प्रबल कितना भी हो,मरने से वह भी डरता है,
सीधे सींगों वाले पशु का ,कौन सामना करता है,
शेर भी उससे मैदान छोड़ भाग जाता है"
                अपनी शक्ति को पहचानो।लोगो को जागरुक करो।यदि आप उस इंसान को तलास रहे हो जो आपको आपके अधिकार दिलायेगा तो अपने को आईने में देखे।वो कोई और नहीं आप खुद हो।यदि आप सच नहीं देख पा रहे हो तो आत्म चिंतन करें और लम्बी सांस लेकर एक गिलास ठंडा पानी पीयें।कुछ देर बाद आपको सब समझ में आ जायेगा।तो फिर उठो जागो ।रुको मत ।दोडो़ मंजिल पाने के लिये।अब ये देखना है कि कौन किसके साथ है।
"कोई इसके साथ है कोई उसके साथ है,
अब ये देखना है कि मैदान किसके हाथ है"
           खुद पर भरोसा करो अब कोई तुम्हे तुम्हारे अधिकार दिलाने नही आयेगा ।हिम्मत के साथ खडे़ हो जाओ ।यह सच है कि पानी में तैरने वाले ही डूबते है।किनारे पर खडे़ रहने वाले नहीं।मगर ऐसे लोग कभी तैरना भी नही सीख पाते और ना ही अपने अधिकार पाते।अपने अंदर जोश पैदा करो ।प्रताप,शिवाजी,चाणक्य के इतिहास को दोहराओ।हम किसी से कम नही।
"अपनी तकदीर बदल देगे ,हमारे पुख्ता इरादे,
हमारी किस्मत अब हाथों की लकीरों की मोहताज नहीं"
             अब रुको मत चल पडो़ बहुत हो गया ये दिलाशा विश्वास का खेल ।जो लोग अब मैदान ए जंग में कूदने के लिये तैयार है।वो मेरे परसनल मोबाइल न .9⃣6⃣9⃣1⃣1⃣7⃣1⃣2⃣6⃣8⃣ पर  मैसेज  छोडे़ ।ताकि आगे की रणनीति बना सकूं।या जो संघ मैदान ए जंग में कूदेगा उसका साथ देगे।मै तो कहता हूं कि संयुक्त मोर्चा को आगे आना चाहिये।यदि वो नहीं तो हम  स्वयं हम  और आप प्रदेश का हर आम अध्यापक इस मैदान ए जंग में कूदेगा।तुम्हारा ये कदम तुम्हारी जिंदगी बदल सकता है।फैसला आप करें।
"हम अपनी रक्त की एक एक बूंद बहा देगे,अपने अधिकार पाने को,
अगर आप मेरा साथ दे, तो मैं मैदान में कूद पड़ूगा मर मिटने को"

उठ!खड़ा हो,संघर्ष कै लिये ,कस ले कमर,
इस बीच मर भी गया , तो समझ ले,हो गया अमर"

आपका कौशल क्रांतिकारी चम्बल

धन्यवाद भाईयों आपका

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