विलय कब और किस स्थित में?
वर्तमान में हर संघ अपने आपको श्रेष्ठ बताने में तल्लीन है! पर यह मुद्दा आम लोगों के लिए छोड दिया जाना चाहिए वही इसका सही जबाव दें पायेगें!
सभी संघों ने जो कार्य किए है वह सराहनीय है!
सबका मकसद एक है सर्वहित !!
परन्तु यह मानसिकता शायद ही उचित हो कि सभी संघों का विलय किसी एक संघ मे हो जायें , जो कि वर्तमान मे एक कोरी कल्पना मात्र होगी!!
जहॉ सिर्फ "स्वयं" के नाम को ही वस अहमियत दी जायें वहॉ "हम" शब्द का रहना नामुमकिन है!!
सभी जानते है कि गंगा, यमुना और सरस्वती अपने आप मे श्रेष्ठ है!!
इनकी तुलना एक दूसरे से करना मुमकिन ही नही !!
लेकिन जहॉ इनका मिलन या संगम होता है , उस पावन संगम को त्रिवेणी के नाम से जाना है न कि गंगा, यमुना या सरस्वती के नाम से!!
क्या ऐसे संगम की पहल कोई संघ करेगा?
क्या इस प्रकार के विलय की मानसिकता संघों मे कभी बनेगी?
यह विचारणीय है,
आखिर कब तक मनभेद?
आखिर कब तक मतभेद?
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