माननीय मुख्यमन्त्री महोदय,
आपने अद्यापको के दर्द को समझा उसके लिये मैं ह्रदय से आभारी हूँ। मगर एक बात मुझे रह रह कर कचोट रही है कि आपके द्वारा संविदा शाला शिक्षको का दर्द नज़रअंदाज़ करना कहाँ तक ज़ायज है??
क्या संविदा शिक्षकों का शिक्षा में कोई योगदान नहीं??
क्या 14 - 18 हज़ार वेतन पाने वाले से 5 - 9 हज़ार मानदेय पाने वाले सुखी है??
क्या सही मायने में एक सन्विदा शिक्षक अपने परिवार से सैंकडो किलोमीटर दूर रहकर अपने और अपने परिवार का पालन पोषण इस मानदेय में कर सकते है??
क्या संविदा शिक्षक की दर्द भरी अरदास व्यर्थ है??
क्या हम मध्यप्रदेश के नागरिक नहीं है??
आज हमारी स्थिति उस लकड़हारे की तरह है जो कमाने के लिये घर से निकलता भी है, काम भी करता है मगर उसे उतना भी पैसा नहीं मिलता की वो अपने परिवार की अन्य आवश्यक्ता को पूरा करना तो दूर परिवार का पेट भी पाल सके।
इससे ज्यादा व्यथा में बयाँ नहीं कर सकता। बस एक विनती इस विषय में वर्तमान महँगाई को देखकर कम से कम मानदेय मे वृद्धि कर हमारे दुख को हल्का करने की कृपा करें।
एक संविदा शिक्षक
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