बदलते समय के साथ सब कुछ बदलता है. गौर से देखे तो 1990 की अपेक्षा हमारी जीवन शैली और समाज पूरी तरह बदल गया है. आज सुचना क्रांति का ही परिणाम है की देश को कैशलेस करने का प्रयास हो रहा है जो की 20 वर्ष पहले सोचना भी हास्यास्पद था.
इसी तरह जन आंदोलन और कर्मचारी आंदोलन भी काफी हद तक बदल चुके है. देश में अन्ना का लोकपाल आंदोलन सोशल मीडिया से विकसित पहला सफल आंदोलन था. इसी की तर्ज पर 2015 का अध्यापक आंदोलन सोशल मीडिया पर विकसित हुआ किन्तु आस के लोगो ने सावधानी बरतते हुए जमीनी यात्राये भी की थी. आंदोलन सफल रहा और तिरंगा रैली में पुलिसिया अत्याचार का प्रतीक बनी एक अध्यापक बहन के बाल पकड़ कर खीचती महिला पुलिस की फोटो से मुख्यमंत्री भी व्यथित हुए परिणाम मुम्बई से छठे के घोषणा हुई.
आंदोलन के दूसरे चरण में 18 सितम्बर को गठित अध्यापक संघर्ष समिति ने 25 को तिरंगा रैली हेतु अध्यापको को केवल 5 दिन का समय दिया था. सितम्बर की तिरंगा रैली सही मायनो में सोशल मीडिया का चमत्कार थी क्योकि उसकी सारी तैयारी ज्ञापन पोस्टर बैनर आदी सब कुछ सोशल मीडिया पर हुआ किन्तु जमीन पर आश्चर्यजनक रूप से 51 जिलो में एक लाख के ऊपर अध्यापक उतर गए.
आंदोलन का तीसरा चरण शहडोल रहा जो 100% सोशल मीडिया के माध्यम से सफल रहा. प्रदेश के एक कोने में स्थित शहडोल में ग्वालियर और मालवा अंचल से कई सौ किलोमीटर की दुरी तय करके अध्यापक पहुंचा और सरकार हमारी जीवटता से इतनी हिल गई की 24 घण्टे के अंदर गणना पत्रक 7440 और 10230 के साथ जारी कर दिया.
कहने का लब्बोलुआब यह है की सोशल मीडिया की ताकत ही 5 जनवरी से शुरू हो रहे आंदोलन के चौथे चरण को सफल बनाएगी. वाट्स एप ग्रुप और फेसबुक का अधिकाधिक उपयोग करे और दुसरो को प्रेरित करे. अपने ग्रुप और स्वयं के आइकन या डी पी को 5 तारीख से जोड़े या पोस्टर को ही डी पी बना ले. ग्रुप के नाम के बाद या पहले 5 जोड़ ले. प्रदेश के हर अध्यापक तक " 5 जनवरी जिला मुख्यालय " पहुंच जाए और उसके मन मस्तिष्क पर छप जाय यह सुनिश्चित करना होगा.
आप सभी को नव वर्ष की शुभकानाये प्रेषित कर ईश्वर से प्रार्थना है की 2017 को अध्यापक इतिहास में मंगलदायी वर्ष बना दे. रिजवान खान बैतूल
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