सादर वंदन
भाईयो आपने कभी सोचा है कि विसंगति रहने का क्या कारण हो सकता है।इसका सबसे बड़ा मुख्य कारण शायद यह प्रतीत होता है।कि हमारे अध्यापक नेताओ ने हमारी मांगो को माननीय मुख्यमंत्री जी के समक्ष सही तरीके से नही रख पाये।इन्हे उस समय ही वार्ता में बताना चाहिये था कि हमें पुनरीक्षित छटा वेतनमान चाहिये ।लेकिन इन्होने कभी भी अपने ज्ञापन या वार्ता में पुनरीक्षित वेतनमान शब्द का प्रयोग ही नही किया।इसीलिये शायद कुछ अध्यापक नेताओ की समझ में बाद में आया कि इसमें तो विसंगति है।यह शायद अध्यापक नेताओ के अनुभव की कमी रही।और अपनी लोकप्रियता,वाहवाही और श्रेय लेने कीे होड़ में साथ ही जल्दी ही सम्मान करने की चाह में वे इस बात को भूल गये।और अध्यापक भाईयो के माथे पर ही सीधा दोषारोपण कर दिया कि इन्हें गुणनफल और लघु. समा.नही आता।मैं पूछना चाहता हूं उन अध्यापक नेताओ से कि यदि आपको गुणनखण्ड और लघु.समा.आते है।तो आपने सही तरीके से माननीय मुख्यमंत्री जी के सामने बात क्यों नही रखी।यदि सही तरीके से रखी है तो फिर ये विसंगति क्यों? कहीं शासन और अध्यापक नेताओं का गेमप्लान तो नही?
अब अध्यापक नेता कह रहे है।कि माननीय मुख्यमंत्री जी पर भरोसा रखे।वे सरल सहज उदार है।ये मंत्रालय में बैठे अधिकारियों की कमी है। भाईयों ऐसा हो सकता है कि बिना सी एम साहब के मंत्रालय के अधिकारी गड़बड़ कर दे।यदि मंत्रालय के अधिकारियो ने गड़बड़ की है।तो सी एम साहब ने उन अधिकारियों पर अब तक कार्यवाही क्यो नही की ? ये बड़ा चिंतनीय प्रश्न है।
एक तरफ तो शासन गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने की बात करती है।वहीं दूसरी तरफ विसंगतिपूर्ण वेतनमान देना चाहती है। इसका सीधा आश्य यह है कि सरकार वास्तव में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना ही नही चाहती।केवल ढिढोरा पीट रही है।यदि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की सरकार की मंशा होती तो शायद विसंगतिपूर्ण वेतनमान और शिक्षा के निजीकरण की बात नही करती।यह सरकार की दोहरी नीति है।इसको हमें समझाना होगा और पुरजोर तरीके से सभी को विरोध करना होगा।
"अध्यापक हर बात , हर सवाल की काट रखता है,
गर्दिश में हिम्मत विराट रखता है,
चाणक्य ने क ई बार बताया जमाने को,
शेर का जिगर तो केवल अध्यापक रखता है"
"भाईयो अब उठो ,कायर मत बनो,अंतिम विजय तुम्हारी होगी,
अगर पराजय भी हो,तो कल फिर तैयारी होगी"
कौशल क्रांतिकारी चम्बल
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