शायद बुरा लग जाये मेरी बातो का
तो ठीक है लगना भी चाहिए
ऊपर कुछ बैनर नुमा फ्लेक्स देखे जिसमे अध्यापक आंदोलन के अग्रिम पंक्ति के अध्यापको की तस्वीरे किसी राजनैतिक दल के नेताजी की तरह दिखाया गया है। शुरुवाती दौर में हम सब जिन बातो से गुरेज करते थे आज बढ़ते कारवाँ से जुड़ते साथियो ने शायद आज़ाद पंथियों को भी पुरातन पोंगापंथी स्वार्थपरक संघीय ढाँचे से जोड़ दिया है अथवा आज़ाद पंथ को समझने में कोई चूक हो रही है।
हम अध्यापक संवर्ग के हितार्थ आज़ाद अध्यापक संघ को एक सचेतक संवाहक और ऊर्जा की तरह लाये है न कि सत्ता के गलियारों में जयकारो की गूँजती आवाज की तरह।
ये सच है कि आज़ाद पंथियों ने एक बड़ी जंग का आगाज़ किया था जिसका अंजाम अब सामने 6th पे की घोषणा के रूप में आया है। लेकिन सत्ता की चोखट और लालफीताशाही के दरबार में सर झुकाने वाले शीश आज़ाद पंथियों के नही हो सकते।
धैर्य संयम और साहस की पताका के वाहक है हम और हमेशा बने रहे इस दिशा में चिंतन करे।
क्षमा करना यदि शब्दों की कठोरता ने किसी की कोमल सहृदयता को ठेस पहुचाई हो।
पर विचार अवश्य करना।
जय आज़ाद
भाईयो यह पोस्ट मेरे परसनल पर आई है।और यह फोटो भी किसी का नाम बताना मैं उचित नही समझता हूं।
-एक अध्यापक
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