मप्र मै यदि सबसे चुनौती पूर्ण क्षेत्र मै भविष्य बनाना या बिगाडना है तो अध्यापक बन जाइये। यहां सरकार अध्यापको के साथ इतने प्रयोग करती रहती है की ऐसे मै अध्यापको को के लिऐ अपने कर्तव्य निभाना कडी चुनौती है। पिछले सत्र पर ही सरसरी नजर डाले तो PPP मोड से शाला बचाने की चुनौती, फिर स्कूल बिल्डिंग या पेड पर लटक के ई अटैन्डेन्स लगाने की चुनौती, छटवा वेतनमान, वेतन विसंगति ?,गैर शैक्षणिक कार्य करते हुऐ गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने की चुनौती है।इसके अलावा अन्य चुनौतियों भी जस की तस है ही। सरकार रोज ही कोई ना कोई आदेश/अडंगा लगा के इस शांति प्रिय प्राणी अध्यापक को अशांत करती रहती है , और इतनी अशांती मै गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने की चुनौती। अब अध्यापक दिन रात अपने अधिकारो के लिऐ संघर्ष ,ज्ञापन, निवेदन, बैठक, धरना, आन्दोलन करे की अपनी डयूटी करे। इतनी चुनौतियों मै फ्राय करने के बाद भी सरकार को लगा कि अब भी अध्यापक मै जान बाकी है तो अब पेश है संतान पालन अवकाश लेने की चुनौती । बंद करे सरकार अध्यापको का शोषण करना। क्या शिक्षिका ? और क्या अध्यापिका ? माँ तो सिर्फ माँ होती हैं। शिक्षिका मै ऐसी कौनसी योग्यता होती है जो अध्यापिका मै नही। अध्यापिका के बच्चों को देखभाल की जरूरत नही या म.प्र. मै अध्यापिका बनना एक माँ का दुर्भाग्य है।, ये पक्षपात , ये भेदभाव किस आधार पर और किस लिए ? समान कार्य और समान वेतन तो अभी तक नही दे पायी सरकार । अब समान अवकाश सुविधा का आदेश होने पर भी शोषण क्यों ?
राशी राठौर देवास
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