जनशिक्षा केन्द्र स्तरीय शाला प्रबंधन समिति के दो दिवसीय प्रशिक्षण के समापन पर यह मेरी स्वरचित बुन्देली कविता जिसका वाचन मेरे द्वारा किया गया!!
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1) हो काय नाराज तुम भैयॉ,
काय नइ बोलत हो मुईयॉ!
कैसे शाला समरे अपनी,
तुम सोई तनक बताव गुईयॉ!!
कहवे सनवे बनी समिति,
कामे कछ्छू परत नईयॉ,
जब जब स्कूल मे बैढक होवे,
कोनऊ कदम धरत नईयॉ!
कैसे समरे शाला अपनी,
तुम सोई तनक बताव गुईयॉ!
स्कूल बन गए जनवासें,
सदस्य बने हे जे बाराती,
मासाब बिचारों बनो दुल्लैया,
अध्यक्ष तो बन गए सैंयॉ!
कैसे समरे शाला .....
राम राम कऊ कर ने पाई,
तो मासाब की शामत आई,
कहत तुम सब कछु तो,
हम सोई तुमसें कम नईयॉ!
कैसे समरें शाला......
कबऊ मासाब जो लेट आ गए,
समझो फिर तो चौपाल मे छा गए,
उर जो कऊ मासाब जल्दी आ गए,
तो कहत का घर पे कोऊ नईयॉ!
कैसे समरे शाला...
शासन ऊन्ना लत्ता दे रई,
किताबें और खाना दे रई,
कॉपी पेन की बाते छोडो,
घर के नाक तक पोछत नईयॉ!
कैसे समरे शाला.....
बहन जी जे डिग्री धारी,
और मासाब सोई हे चिन्गारी,
आग कैसें जा लगे पढाई की,
गॉव की हवा मिलत नईयॉ!
कैसे समरे शाला....
कहत अध्यक्ष मासाब से ,
करक नईयॉ तुम काम हिसाब से,
कोरे चैक पे दशखत करवाते,
जोई काम जचत नईयॉ!
कैसे समरे शाला....
मोडी मोडा नाय माय हुंदरा रय,
तुम तो बैढे गप्पें लडा रय,
जो कछु लिखो भोजन मे,
वो बच्चों हे मिलत नईयॉ!
कैसे समरे शाला.....
अब शासन प्रशिक्षण दे रई,
देखो बात पते की कै रई,
सबरे मिलके काम बनाओ,
मिलजुल कै जा शाला चलाओ,
नै लडो भिडों तुम भैया,
ऐसें काम चलत नईयॉ!
कैसे समरे शाला.....
बाल बच्चे स्कूल तुम भेजो,
जे मे बने आगें को सेजो,
पढ लिख के होई तरक्की,
और गमारी को कटे जो रेजो,
बाल और नाखून कटवादे,
और भेजो पहना कै पनईयॉ!
कैसे समरे शाला अपनी,
तुम सोई तनक बताव गुईयॉ!!
🍀🍀जय हो🍀🍀
2) देखो क्या से क्या हो गए हम,
शिक्षक न होकर शेर हो गए हम!!
नॉच रहे बन्दर जैसे,
वक्त का कैसा फेर हो गये हम!!
सब बात एकता की करते,
संयुक्त होने का दम भरते,
न वो पहल मिलन की करते,
न हम ही कदम आगे धरते,
कर रहे बदनाम अपने आप को,
देखो कितने निष्ठुर हो गये हम!!
सबको बॉट रहे हम आईना,
गुणगान सब करते अपना,
खुद के हक के खिलाफ हो रहे,
तोड रहे खुद हंसी सपना,
बना लिया किसी को नेता,
किसी के बजीर हो रहे हम!!
कोई शेर बना कोई सवाशेर,
कोई अपने मे क्रॉन्तिवीर बन रहा,
भूल गये यर्यादा पद की,
न रही खबर अपनी हद की,
न करो राजनीति अपनो की कुर्वानी पर,
जरा सा तो लगाम दो अपनी बदजुवानी पर,
कब तलक बन्दर बन नाचेगें,
कब तलक निवाले के लिए मदारी को ताकेगें
न बनो जानवर ,
चलो इंसान बने हम!!
जय हो
सीताराम(सुर्यकॉन्त) विश्वकर्मा
शास.प्राथ. शाला कुसमी
ब्लॉक केसली जि.सागर
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