जैसा कि आपको विदित है कि मेरे द्वारा उठाए गए एकता के कदम पर प्रतिद्दंदीयो की आलोचना के आरोप-प्रत्यारोप मुझ पर अनवरत लग रहे है। लेकिन मेरी जिद है कि अध्यापक हित मे एकता का अलख कायम हो।मे जानता हूँ कि सत्य पर हमला और उसकी आलोचना होती है।आलोचना और निन्दा होना चाहिए।मे भी इसका पक्षधर हूँ।क्योंकि आलोचनाओ से जीवन मे निखार और सुधार आता है।मे आलोचना और निन्दा का स्वागत करता हूँ।कारण यह है कि इससे मुझे आत्मशक्ति व आत्मशुद्धि का अहसास होता है।
जहाँ तक मुझ पर एकपक्षीय कलम चलाने का आरोप है।मे इसे खारिज करता हूँ।मैंने उन सभी पक्षो को कटघरे मे खडा करने का प्रयास किया है, जो एकता मे बाधक बने हुए है। बात रही शासकीय अध्यापक संगठन की अर्थात ब्रजेश शर्मा जी की, तो मे उस संगठन के कार्यकलापो और उसकी समान विचारधाराओ के साथ रहकर निष्पक्षता से कार्य कर रहा हूँ।जिस दिन मुझे लगेगा कि शास अध्यापक हितो के विपरीत अपनी विचारधाराओ से हटकर काम कर रहा है।मे आपको वादे और विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि, मे ठीक उसी समय शास के सम्भागीय मीडिया प्रभारी के पद से इस्तीफा देकर अध्यापक हित मे उसके विरुद्ध भी ठीक उसी प्रकार बिगुल फूकूंगा, जैसे कि अन्य संघो के कार्यकलापो के विरोध मे लिखता रहा हूँ।
मेरे किसी भी लेख या टिप्पणी पर आरोप-प्रत्यारोप लगाना आसान है।लेकिन अंधभक्ति की दोड मे सत्य को दोष देना कहा तक उचित है ? मे समझ नही पा रहा हूँ कि सत्य से मेरे भाईयो का आखिर क्या बैर है ? क्या सत्य लिखना अपराध है ? यदि अपराध है तो, मे यह अपराध बार-बार करूंगा और करता रहूंगा।चाहे इसकी कीमत मुझे किसी भी रूप मे चुकाना पडे।मे पीछे नही हटूंगा।
जहाँ तक एक संघ विशेष का सवाल है, मे किसी भी संघ का विरोधी नही हूँ।यदि विरोध है तो उनकी गलत नीतियो का विरोध होगा और होता रहेगा।उन संघो को विरोध की भाषा का आत्मसम्मान से आत्मनिरिक्षण करना चाहिए, न कि किसी लेखक पर गन्दगी की स्याही फेकना चाहिए।एसे अनुचित तरीको का समाज मे कोई स्थान नही है।बडा बनने के लिए छोटा बनना बुरी बात नही है। लेकिन छोटी बाते करना नादानी से कम नही है।
मे कौशल क्रांतिकारी आप सभी साथियो से आव्हान करता हूँ कि, सत्य के साथ चले।सत्य के मार्ग पर चलकर हम एकता के सूत्रधार बनकर अध्यापको के हितो और उनके अधिकारो पर विजय प्राप्त करे।
इसी उम्मीद और विश्वास के साथ मे आपका सेवक बनकर आपके अधिकारो को कुचलने वाले और महत्वाकांक्षा के कवच मे लिपटे संघो पर अपनी बेबाक राय रखता रहूंगा।
आज बस इतना ही...कल फिर किसी विषय पर आपसे चर्चा का अवसर प्राप्त होगा।
किसी शायर ने ठीक ही कहा :-
फानूस बनकर जिसकी हिफाजत हवा करे,
वह शमा क्या बुझे, जिसे रोशन खुदा करे।
कल जो सांत्वना आदेश आया है।क्या इससे वेतन निर्धारण कर सकते है।यदि कर सकते है ।तो किन बिन्दुओ को दृष्टिगत रखकर....????
आदेश क्या है।.....?????आदेश जिसका पालन अधीनस्थ अधिकारी कर्मचारी कर सके....???
जबकि यह आदेश अपने बिन्दु क्र्ं -3 से स्वयं अप्रभावशील है।तो इसका पालन भी नही कर सकते ।तो फिर इसे आदेश क्यों समझे।आदेश की गणना की टेबिले साथ में भी नहीं होने से वेतन निर्धारण का आंकलन भी नही कर सकते।अत:कल जो आदेश आया है वह ओचित्यहीन है।केवल सांत्वना के छींटे देकर मनसमझावन कर दिया है।इतनी जानकारी तो संक्षेपिका से ही दो माह पूर्व ही हो चुकी थी जो आज शांत्वना आदेश से जानकारी प्राप्त हो रही है।तो फिर समझ में नहीं आ रहा कुछ वीर योध्दा इसे अपनी जीत क्यों समझ रहे है।और ताल ठोककर विसंगतिरहित आदेश का दम भर रहे है।
भाईयों आपने कभी सोचा कि आदेश प्रसारण के लिये उपवास और तिरंगा यात्रा .....????आदेश कभी भी आ जाये मीटर तो जनवरी से....??"
लेकिन सबसे बड़ा मुद्दा है विसंगति का जिसे अनदेखा किया जा रहा है।क्यों....?????
कौशल क्रांतिकारी चम्बल
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