सादर वंदन
साथियों आज अध्यापकों के साथ हो रहे अन्याय और शोषण से प्रदेश का अध्यापक गहरी निराशा और चिंता में डूबा है।एक तरफ छटावेतनमान विसंगति दूसरी तरफ गुणवत्ता बढाने के लिये एम शिक्षा मित्र की उपस्थिति और आयुक्त महोदय का संतान पालन के तुगलकी आदेश को देखकर आज के अध्यापको को एकता के सूत्र में बंधकर आंदोलन का बिगुल बजाकर सत्ता में बैठे अधिकारियों की कुर्सी हिला देनी चाहियें।यह तभी संभव है जब सभी संघ महात्तावाकांक्षा, पद लोलुपता और निजी स्वार्थ की राजनीति छोड़कर अध्यापकहितों के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुये एक मंच पर खड़े हो जाये।और सत्ता के अधिकारियों का ताज हिला दे।
तो फिर क्यों नही एक मंच पर...????? क्या अध्यापकहितो की किसी संगठन को चिंता नही।
क्या संगठन अध्यापकहितो को दृष्टिगत रखते हुये नही बनाये गये.."?"
क्या संघो का उद्देशय राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिये....???
क्या अपने निजी स्वार्थ को ध्यान में रखते हुये संघ का गठन....????
क्या पद लोलुपता और पहचान और स्टेटश बढाने संघो का गठन....??"
क्या राजनीतिक गलियारों में पैठ बनाकर स्वयं की स्वार्थ सिद्दी के लिये......??????
यदि नहीं तो क्यों एक मंच पर आना नही चाहते।जब एक लक्ष्य तो एक ही संघ होना चाहिये केवल संयुक्त मोर्चा । हम विद्यार्थियों को बार बार यही पढ़ाते है कि एकता में शक्ति है तो फिर उसी सबक को व्यवहारिक जीवन में क्यूं नही अपनाते ।स्वाभिमान और सम्मान की रक्षा के लिये हमें संयुक्त मोर्चा का मूल मंत्र अपनान ही पडे़गा अन्यथा वो दिन दूर नही जब चाणक्य के अस्तित्व पर भी प्रश्न चिन्ह लग जायेगा।
इस पोस्ट पर गंभीर चिंतन कर क्रियान्वित करें।नही तो फोटो खिंचाने बधाई देने में अध्यापकों को बीच में आडे़ न लाये जो भी करें अपने निजी स्तर पर करें ।हमारें नाम से अपनी रानीतीति न चमकाऐ।
"सभी संघो का एक संगठन
तभी होगा हमारा संविलियन"
कौशल क्रांतिकारी चम्बल
9691171268
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