म.प्र.अन्य राज्यो की तुलना में शिक्षा के क्षेत्र में भारत में अग्रणी नहीं है।जिसका सीधा सीधा कारण में आपको अरज कर रहा हुँ ।सही लगे तो बताना। बुरा मत मानना।
1) म.प्र.का पाठ्यक्रम CBSE या अन्य राज्यो के सामान नहीं है।
2) 25 वर्षो से गुरु का अपमान सरकारो द्वारा किया जा रहा है ।
जो भी आया उसने वो नाम रख दिया ।
किसी ने 300-/ किसी ने 500-/,किसी ने 600-/, किसी ने 700-/₹ वेतन रखा वो भी कभी भी समय पर नहीं मिला। इतने कम रुपयो में परिवार तो चल नहीं सकता। इन कम वेतन वाले गुरुओ को परिवार का पालन करने के लिए अध्यापन के अलावा भी और काम करने पड़े ।क्योकि सभी ना तो किसान के बेटे थे नहीं अमीर बाप की औलाद
1) किसी ने स्कूल जाते समय या वापस आते समय । साड़िया,दरिया,चुडिया,सब्जी ,नकली अर्नामेंट,चाय पत्ती,या अन्य सामग्री बेचीं।
2) किसी ने होटल पर, दुकान पर ,पेट्रोल पम्प,टेलर की दुकान,लोहार की दुकान ,कारपेंटर की दुकान पर काम किया।
3) किसी ने पुताई का काम किया। किसी ने कंडाक्टरी किसी ने ड्राइवरी की
ऎसे काम करने से समाज में व् बच्चों के सामने इज्जत जाती रही।
फिर वेतन बढ़ाने के लिए बार बार हड़ताल करना पड़ी जिसमे सरकारे लठ मारने ',जेल भेजने में पीछे नहीं रही।
जब एक गुरु जो भगवान् से पहले पूजनीय हे। उसको शिष्यो ने भोपाल की सड़को पर बार बार पिटते देखा जेल जाते देखा। विद्यालय के बाद मजदूरी करते देखा तो समाज में भिखमंगो जैसी इज्जत हो गयी।
4) नेताओ ने भी बड़े बड़े मंच से अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी
5) अधिकारियो ने भी समय समय पर अपमानित करने में कसार नहीं छोड़ी।
6) कुछ साथियो ने प्राइवेट स्कूल में पढ़ाया परिणाम यह हुआ की वहा छात्र संख्या बड़ गये और यहाँ बंद होने की कगार पर है ।
7) कई साथी नेताओ के मित्र होकर खुद नेता बन गए।
8) कई साथी हड़ताल करवाते करवाते नेता बन गए।
9) हमारे साथ काम करने वाले शिक्षा विभाग के लोगो ने सौतेला व्यवहार किया।
10) हमारी नियुक्ति कर्ता पंचायत विभाग, काम करे शिक्षा विभाग के ,स्कूलो में जैसे हम हो अनाथ कोई हमें अपना नहीं कहता।
गुरु का ऐसा अपमान तो कभी इतिहास में नहीं पढ़ा ।
ऐसा तो नहीं की गुरु दब कर रह गया। अरे साथियो उस गुरु को खोजो जिसकी आज के समाज में सख्त जरुरत है ।
क्योकिं जहाँ बच्चे मोटी फ़ीस देकर पढ़ते है वहाँ तो गुरु हो ही नहीं सकता क्योकिं डोनेशन का अर्थ होता है-अनुदान,उपकार,कृपा,खेरात, ,मदद्,उपकार,दया,भिक्षा।
फ़ीस का अर्थ =पारिश्रमिक ,वेतन,भाड़ा,चन्दा
तो वहाँ तो शिक्षा खरीदी जाती है ली नहीं जाती।
गुरु के परिवार के पालन की जबाबदारी तो राजा की होती है और शिष्य शिक्षा प्राप्ति के बाद दक्षिणा देते है ।चाहे वो धन्यवाद् हो।
तो हम समस्त गुरु मिलकर काम ऐसा करो की भारत में मध्यप्रदेश के गुरुओ का नाम सम्मान हो इसके लिए सामान नाम सामान काम सामान वेतन हो।
और अपमानित नाम और अपमानित वेतन की जगह अन्य राज्यो की तुलना में बेहतर वेतन और भारत सरकार के सामान पाठयक्रम करो।
हमसे अब और अपमान सहन नहीं होता। कर दो सविलियन ताकि बंद हो भेदभाव और कोई नया संगठन नहीं बनाना पड़े ।नहीं जेल जाना पड़े नहीं पुलिस के डंडे खाना पड़े।
अब तो समधियों के सामने इज्जत ख़राब नहीं हो न हीं हमारी बेटियो को ताने सुनना पड़े।
नारायण हरगोड़
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