सरकारो की नजर में मध्यप्रदेश में अध्यापक एक असंतोषी प्राणी है जबकि वास्तविकता में हाल ही में घोषित हुआ विसंगतिपूर्ण 6टां वेतनमान गंजो को कंघी बेचने की सरकारी कोसिस से ज्यादा कुछ नहीं है। जिसे शोषण कारी सरकार अपनीषड्यंत्रकारी नियत के अनुरूप पूरी तरह बे -तन के करने की कोसिस कर रही पर अध्यापक है मन से सरकार के सामने तन कर खड़े हो ही जाते है ।
प्रदेश के मुखिया द्वारा हर मंच पर शिक्षा की उपलब्धियों का बखान ,जनाजे को बारात समझ उत्सव मानाने जैसा है ।
अब अध्यापक दिन
रात अपने अधिकारो के लिऐ संघर्ष ,ज्ञापन, निवेदन, बैठक,
धरना, आन्दोलन करे की अध्यापन करे। इतनी चुनौतियों
को पैदा के बाद भी सरकार को लगा कि अब भी
अध्यापक में जान बाकी है तो 6वे वेतन या अन्य आदेशो ,या संतान पालन अवकाश में असमानता कर दी ,आखिर कब तक ?
अच्छा है सरकार की नजर में अध्यापक जुझारू जिन्दा कौम है वरना मरे को कौन ठोकर मरता है । साथियो हम लड़कर ही कुछ पा सकते तब घर बैठ संघर्ष नहीं बल्कि सड़को पर आना ही होगा । अध्यापको के कई संघ संगठन है ,जिसमे संघनाम ,नेता ,से नातेदारी नहीं है जो भी सही दिशा का आवाहन करे अध्यापक को उसके साथ होना चाहिए ,।
सत्ता धारी दल इस कोसिस में है की किसी भी तरह ज्ञान के ,प्रकाश के ,आशा के सारे दीप बुझ जाय जिससे काले कारनामो की अंधियारी सत्ता को सतत बनाये रखा जाय।
अध्यापको ने डंडे खाये , जेल गए ,फिर भी मानते नहीं , आखिर कारन क्या है ?
सामान्य अर्थो में बात धन की है और अध्यापक कोई साधू संत तो है नहीं अतः भौतिकवादी युग में तन जाता हो तो जाय ,इसलिये हर बार हम पिटने को तैयार हो जाते है ?
बिलकुल नहीं बात समानता के सम्मान की है बात मान की है ,स्वाभिमान की है ,तब मन कैसे मान जाय ,कैसे आभावो ,अपमानो को भूल जाय ।
बात अपनों के दर्द की है ,तब अध्यापक हर उस हद तक का संघर्ष करेगा जो किया जा सकता हो ।
एक बार पुनः संयुक्त होकर संघर्स का एकजुट जयघोष करने का वक्त है ,खंड खंड में बटकर
कुछ भी पाना संभव नहीं ।
प्रत्येक नया दिन नयी नाव ले आता है
लेकिन समुद्र है वही, सिंधु का तीर वही
प्रत्येक नया दिन नया घाव दे जाता है
लेकिन पीड़ा है वही, नयन का नीर वही
धधका दो सारी आग एक झोंके में
थोड़ा— थोड़ा हर रोज जलाते क्यों हो?
क्षण में जब यह हिमवान पिघल सकता है,
तिल—तिल कर अपना उपल गलाते क्यों हो?
अतुल सिंह परिहार
शासकीय अध्यापक संगठन ,सतना
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