क्रांतिकारी का कड़वा सच.............
साथियों,
अंहकार और मूर्खता एक दूसरे के पर्याय होते है।मूर्खो को तो अपने अहंकार का पता ही नही लगता इसलिये अंहकारी होना लाजिमी हो सकता है।मगर एक बुध्दिजीवीयों वाला शिक्षित समाज अंहकारी है तो उससे बडा़ मूर्ख और कोई नहीं।
मैं जानता हूं कि प्रत्येक व्यक्ति में खुद को श्रेष्ठ समझने की एक ऐसी भावना व्याप्त होती है।जिससे वो अन्य को खुद से ऊँचा समझने ही नही देती।और ऐसी भावना किसी का हितार्थ करने वाली भी नही हो सकती।
आज प्राय:ऐसे कथित शब्दों का प्रयोग कि "बाकी सब बकबास" "क्यों पडे़ हो चक्कर में कोई नही है हमारी टक्कर में "शेर बगल में खडे़ होकर फोटो खिंचवाना "अपनी तुलना राम के भरत और शकुन्तला के पुत्र भरत से करना "अर्मायदित अनुचित शब्दों का प्रयोग करना "हैदराबादी फोटो के सहारे मासूम अध्यापकों की भावनाओ से खिलवाड़ करना 'खुद को आजादपंथी अन्य सभी बुध्दिजीवी शिक्षित समाज से पागलपंथी कहना ।क्या इन सभी तथ्यो से अंहकार की बूं नही आती । समझ में नहीं आता इन सब बातो से अध्यापक समाज को आजादपंथी क्या संदेश देना चाहते है।
बस अब और तुम्हारा खेल नहीं चल सकता है।अब बुध्दिजीवी अध्यापक सब कुछ समझ चुका है।आपका नेत्तव कभी अध्यापकहितेषी नहीं हो सकता है।एकता के बाधकों आपकी बार बार बदलती झूठी बयानबाजी की दास्तान ने आपने अपना विश्वास खो दिया।झूठ का खुला नंगा नृत्य एफ बी पर परीक्षाओ का बहिष्कार लिखना फिर ये कहना कि किसी दूसरे ने लिख दिया है।फिर ये कहना आई डी हैंग हो गई है।वाह क्या कहने .....???
आपके अंदर अंहकार के गुणो का समावेश हो गया है।और इस अंहकार के कारण आपकी बुध्दि विनाशकालेविपरीत हो गई है।जाबेद भाई का ये कहना ओवरकान्फिडेन्स होगा कि "मोन रैली के माध्यम से तानाशाह तंत्र के बहरेपन को दूर करने के लिये ईयर बटस से सफाई का काम "लेकिन मैं कहता हूं ईयरबटस से बहरापन तो दूर अभी शासन के कान में जूं तक नहीं रेंगी।जाबेद भाई का खुद को आजादपंथी अन्य को पागलपंथी समझाना अंहकार के नशा में चूर होना है।और ये तुम्हारा बजूद खत्म होने का सबसे बड़ा कारण है।अरे क्यों इन अध्यापकों को अपनी राजनैतिक हवस का शिकार बना रहे हो।....????अरे क्यों इन मासुम अध्यापकों को अपनी राजनैतिक वासना का शिकार बना रहे हो।....????पहले से ही ये मासूम अपना वेतन कटवाके बहुत कुछ खो चुके है।
पूर्व के आंदोलन की भूल में मत रहना पूर्व का लालघाटी आंदोलन संयुक्तमोर्चा और प्रदेश के मासूम अध्यापकों का आंदोलन था ।अंहकारियों का नहीं।और आज तुम जो भी कर रहे हो जुलूस या तिरंगा यात्रा उससे सरकार के बहरेपन की सफाई तो दूर शासन का नाक का बाल भी नहीं हिलेगा।जब तक संयुक्त मोर्चा के बैनर तले आंदोलन नही होगा ।तब तक कुछ भी नही हो सकता फिर भी टीकमगढ़ के मोन जुलूस के जैसे तिरंगा यात्रा को भी करके देखलो ।शायद आपका अंहकार खत्म हो जाये।
आज ये क्रांतिकारी फिर से छाती ठोककर कह रहा है।कि आदेश 28 के बाद ही होगा न कि 28 से पहले।यदि 28 तक होता है तो मैं अपने मीडिया प्रभारी पद से इस्तीफा दे दूंगा या फिर भाई जाबेद जी अपने आजाद संघ के पद से इस्तीफा दे दे। यहीं पागलपंथी और आजादपंथी की सच्चाई का पता लग जायेगा।मै कभी भी अध्यापकों को भ्रमित करने वाली बात नही कहता ।क्योंकि मैं जानता हूं कि जब तक संयुक्त रुप से आवाज नहीं उठेगी तब तक विसंगति भी दूर नहीं होगीं।
अहंकार तो रावण और कंश जैसे शक्तिशाली योध्दाओं का मिट गया है।अंहकार की राक्षसी भावनाओ को रखने वालो इसी वक्त इसका तिरस्कार कर दो नहीं ये तुम्हें बर्बाद कर देगी।और जो अंधभक्त बनकर बैठे है वो भी समय रहते पद की भूख ,लालसा और वासना को छोड़कर संभल जाये और सच्चाई को पहचाने क्योंकि अंधभकत तो पहले आशाराम और रामपाल के भी बहुत थे ।उनको भी आज पछताना पड़ रहा है।
आप अपनी प्रतिक्रियाओ को नियंत्रित और आत्मविश्लेषण करना सीखे।यदि आप समर्पण भाव से अध्यापकहित में काम करेगे तो आपका अंहकार स्वतं ही मिट जायेगा।यदि आपका यहीं व्यवहार रहा तो आपके द्वारा किया गया कार्य प्रसिध्दि पाने के नाटक के अलावा कुछ नहीं माना जा सकता।समझ में नहीं आता कि आप अंहकार की लड़ाई लड़ रहे हो कि अध्यापकहित की।प्रदेश का अध्यापक सब समझ रहा है।
"मस्त योगी है कि हम ,सुख देखकर सबका सुखी है,
कुछ अजब मन है कि हम ,दुख देखकर सबका दुखी है,
तुम हमारी बर्फ की इन चोटियों को मत कुरेदो,
दहकता लावा हदय में, है कि हम ज्वालामुखी है।"
कौशल क्रांतिकारी चम्बल
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