आदेश क्यों नही आया ये प्रश्न सभी को खलता था अब जब आदेश आया है तो सब अपना अपना हिसाब किताब जोडने मै लगे है। किसी को उन संविदा भाई बहनो की याद भी नही जिनसे किये गये कुछ वादे अधूरे रह गये है। इन चर्चाओ के बीच संविदा सोचते है की हम कौनसा हिसाब जोडे ? 4 माह के बाद,जुलाई 2013 के नियुक्त सभी साथी लगभग 80% संविदा ,अध्यापक बन जायेंगे। फिर संविदा की संख्या सीमट के रह जायेगी। जाहिर सी बात है कहने सुनने मै शायद अच्छी ना लगे किन्तु सच है कोई भी संविदा शिक्षक, अध्यापक बनने पर भी संविदा लिए क्यो संघर्ष करेगा ? यही बात वर्तमान के संविदा शिक्षक साथी पर भी लागू होती है, क्योंकि आज भी संविदा शिक्षक के नेता अध्यापक ही है।बचे हुऐ 20% संविदा साथी को फिर से औरो का मुह इसी प्रकार ताकना होगा जैसा अभी 2015 मै हम ताकते ही रह गये।
संविदा की विडम्बना यह है की जब तक यथार्थता का पता लगता है कि खुद के मरे स्वर्ग नही दिखेगा मतलब संविदा को खुद ही अपनी लड़ाई लडनी होगी , तक बहुत देर हो चुकी होती है, और आने वाले सभी संविदा शिक्षक के लिए भी यही क्रम चलता रहेगा।संविदा शिक्षक ये बात भलीभांति समझ ले की उनके हक की लड़ाई कोई नही लड रहा है , और ना लडेगा ।सब संविदा के लिऐ संघर्ष करने का बहाना बनाते है , अध्यापको की मांगो के क्रम मै संविदा शिक्षक की पीडा नीचे कही हशिए पर पडी मिलती है। संविदा शिक्षक को वादे कर सिर्फ भीड बढाने के लिए इस्तेमाल होता है और इसी बीच कुछ संविदा शिक्षक छुट भईया नेता बन बैठते है। संघ के पद का तमगा ही ऐसे नेताओ के लिए भगवान है। जब तक संविदा शिक्षक खुद अपनी लड़ाई लडने के लिऐ खडा नही होगा तब तक संविदा शिक्षक की पीड़ा नही कम होने वाली। कोई भी संघ, व्यक्ति संविदा के लिए संघर्ष नही करेगे । संघर्ष तो संविदा भाई-बहनो को स्वयं ही करना पड़ेगा और डटके संघर्ष करना पडेगा। तब ही संविदा कल्चर से छुटकारा या कुछ राहत मिलेगी।
राशी राठौर देवास
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