(आज की पाती क्रान्तिकारी के नाम)
(✒प्रवीण चौहान✒)
कोशल क्रान्तिकारी जी
आज आप व्हाटसएप की दुनिया से नदारद रहे...एक निष्पक्ष लेखक का आजाद अध्यापक संघ के आज के खास आन्दोलन से इस तरह दूरी बनाने पर मेरी गहरी आपत्ति है। आज ही के दिन आपकी प्रखर लेखनी खामोशी लेकर क्यो सो गई... ? आखिर क्यो ? क्या आप शासकीय अध्यापक संघ के पदाधिकारी है इसलिये...? क्या आप ब्रजेश जी के खास है इसलिये ...? क्या आजाद अध्यापक संघ ने आज सरकार के मापदण्डो पर सवाल उठाए इसलिए...? या फिर आपके पास आज आजाद अध्यापक संघ की निन्दा करने के लिए कोई विषय नही था इसलिये...? आखिर आपकी विचारधारा आज निष्पक्षता के नाम पर चुप क्यो रही...? यदि आप आज आजाद अध्यापक संघ के आन्दोलन पर अपनी प्रतिभा से प्रशंसा की चंद लाईन लिख देते तो क्या आपका सम्मान गिर जाता...? कदापि नही गिरता...वरन आपके सम्मान मे इजाफा होता...! मे व्यक्तिगत रूप से एसा सोच सकता हूॅ।
कोशल जी, मे मानता हूॅ।एक लेखक जब लिखने के लिए कलम उठाता है तो, उसकी कलम मे प्रशंसा और आलोचना का समावेश होता है...प्रशंसा पाने वाले की बाँह खिल जाती है...वही आलोचना के अकंद्रदान अक्रोशित होकर हमलावर की मुद्रा मे खडे हो जाते है।कुछ एसे भी होते है जिन्हे लेख की भाषा समझने की चिन्ता कम और अपने सरदार का खास बनने की फिक्र अधिक रहती है।आनन-फानन मे किसी भी अमयाॅदित भाषा की एक या दो लाईन लिखकर वे सोचते है कि हमसे बडा वफादार कोई नही...यही सोच नेतृत्वकताॅओ की इज्जत मे कमी पेदा कर देती है।एक लेखक की कलम पर हमले के दोषी इतराते है...लेकिन निम्नता की बबॅरता पर शमिॅन्दा नही होते।मुझे दु:ख होता है जब कलम पर बिना सोचे-समझे प्रहार होता है।
मे आपकी कलम पर उठते सवालो के बीच आपकी पक्षपात से रंगी कलम पर प्रश्नचिन्ह अंकित करता हूॅ। क्योकि आप आजाद अध्यापक संघ की कायॅप्रणाली पर सवाल खडे करते है...लेकिन राज्य अध्यापक संघ पर क्यो नही..
.? शासकीय अध्यापक संघ पर क्यो नही...? या अन्य संघो पर क्यो नही....? क्या प्रेम है इनसे आपका...क्या रिश्ते है इनसे आपके...इन रिश्ते-नातो को उजागर करना चाहिए...वरन एक तरफा लिखने से सवाल उठना और उठाना लाजमी माना जाएगा...आपकी लेखनी पक्षपात रहित नही मानी जाएगी।
फिर भी मे आपको एक नेक सलाह दूंगा कि या तो आप शासकीय अध्यापक संघ से इस्तीफा देकर आम अध्यापक बनकर निष्पक्ष लिखना आरम्भ करे।मे जानता हूँ कि आप किसी भी संघ के कायॅकलापो से खुश नही है।यह आपकी नाराजगी नही...एक ईमानदार कायॅशेली है जो अत्यंत कम इंसानो मे पाई जाती है।
आपमे जोश है...जज्बा है... जिन्दादिली है...अगर नही है तो आपकी कलम मे निष्पक्षता का भाव नही है... क्योकि ब्रजेश जी का प्रेम छूटेगा नही ....और निष्पक्षता आएगी नही...जिस दिन प्रेम रिश्तो को त्यागकर निष्पक्षता का दामन थाम लोगे...आपकी इज्जत पक्ष भी करेगा... विपक्ष भी करेगा...कुछ अपवाद स्वरूप पैदलो को छोडकर ...कलम चलाना सहज बात नही है...यह काम इतना कठीन है कि इसकी कल्पना नही की जा सकती।
कोशल जी, यदि आप आम अध्यापक बनकर निष्पक्ष कलम चलाकर एक आन्दोलन खडा करते तो, मे सोचता हूँ कि आपके साथ कारवा होता ...आप किसी के मोहताज नही होते...वरन अनेक संगठन आपके नेतृत्व मे काम करते दिखाई देते।अभी भी समय है...आप आज भी आसमान की बुलंन्दियो को छू सकते हो...म.प्र. के अध्यापक समाज मे कोने - कोने मे आपकी कलम के चचॅ है...अभी भी उठो... जागो... मोह माया बन्धनो से मुक्त होकर निष्पक्षता का मेदान सम्हालो...कल भी आपका था ...लेकिन पक्षपात आपके कल मे रूकावट था...आज को अपना बनाओ...और निष्पक्षता के बाण चलाओ... न रहेगे रावण...न रहेगे... दुयोॅधन...!
(लेखक के स्वतन्त्र विचारक है। यह उनकी निजी राय है।)
No comments:
Post a Comment