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कायर बन कौम कलंकित करने से अच्छा लड़कर मरना स्वीकार करे: अतुल सिंह परिहार

Monday, 15 February 2016

संगठन ..संगठन होता है ,..
कोई इससे बड़ा नहीं होता है ,
कायर बन कौम कलंकित करने से अच्छा ,
लड़कर मरना स्वीकार करे ...।
आखिर  अध्यापको के संघ अविश्वसनीय  क्यों होते जा रहे है..?
इमारत का निर्माण सीधा सा होता है पुल सड़कों का निर्माण निर्धारित नक्शे के आधार पर चलता रहता है किंतु कर्मचारी संगठनों के सृजन में अनेकानेक पेचीदगियां और कठिनाइयां आती है कार्य का स्वरुप ही ऐसा है जिसमें प्रवाह के उलटने का प्रयास एवम निर्धारित प्रक्रिया के परिवर्तन की मांग सन्निहित  होती है , जिसकी पूर्ति में प्राय: उन सभी से टकराना पड़ता है जो अब तक स्वजन हितैषी निकटवर्ती एवं अपने प्रभाव क्षेत्र के माने जाते थे इसे मारकाट के संतुल्य माना जा सकता है भले ही उस तक टकराहट  को दृश्य रूप में ना देखा जा सकता हो । संगठन की आवश्यकता क्यों किसी भी बड़े सामूहिक प्रदर्श को प्राप्त करने के लिए इतिहास भी कुछ इसी प्रकार के संकेत देता रहा है रामायण में भगवान राम का दृष्टांत ही कुछ इसी प्रकार का है उनमें क्या करने की सामर्थ नहीं थी ये क्या नहीं कर सकते थे अपनी क्षमता से हर प्रकार के कार्य कर सकते थे किंतु उन्होंने भी बंदरों की सेना का संगठन बनाकर संगठन की अनिवार्यता एवं आवश्यकता को प्रतिपादित किया है संगठन में सब की सहभागिता क्यों अब क्यों की बात रामायण की चल निकली है उसकी में सीता की उत्पत्ति के संबंध में एक किदवंती है कि सहस्र ऋषि क एक एक रक्त  बूँद से एक घड़ा भ रा गया और उससे आदिशक्ति सीता माता का जन्म हुआ यह घड़ा एक ऋषि के रक्त से भी भरा जा सकता था फिर सहस्र  ऋषियो की आवश्यकता क्यों पड़ी क्या वह सहस्त्रबुद्धे उन ऋषि मुनियों का तपोवल था जिससे अद्भुत शक्ति का प्रादुर्भाव हुआ उसी तरह आप सब का सहयोग किसी भी कार्य को करने के लिए वह शक्ति प्रदान कर जाता है जिसकी आवश्यकता होती है । हमारे संगठन की मांग जब शासन के समक्ष जाती है तो समझा जाता है कि यह माग 200000 लोगों की है और किस जन भावना को समझना शासन की मजबूरी  हो जाती है निश्चय ही कोई भी संगठन सर्वसम्मति से ही चला करते हैं किंतु उंहें कार्य रुप में परिणित करने वाले ने नेतृत्व की आवश्यकता होती है वह कोई सुपरमैन अवतार नहीं होता बल्कि विशिष्ट सिद्धांत एवं विश्वास के साथ कर्तव्यनिष्ठ एवं संगठन निष्ठ होता है जिसमें समय की विपन्नता को चुनौती देने वाले और उसके स्थान पर सुख संपन्नता प्रतिस्थापित करने के  आत्मविश्वास  का दृढ़  निश्चय किया  हो, नेतृत्वकर्ता का व्यक्तित्व अच्छा मजबूत होना चाहिए जो स्वयं तो डगमगाए नहीं वरन विपरीत परिस्थितियों में भी साथियो को डिगने   नहीं देते और प्रतिकूल ता ओं से युद्ध करता हे आप अच्छा किसी पहलवान  की भूमिका निभाता है ।
बड़े कार्य  हल्के साधनो से संपन्न नहीं होते उनके लिए अधिक सामर्थ्य साधन जुटाने होते हैं प्रायः मजदूरों द्वारा न उठ सकने वाला भार क्रेन उठाती हैं ।
हथौड़े से जो चट्टानें नहीं टूटती उन्हें डायनामाइट से तोड़ना पड़ता है उसी प्रकार व्यक्ति सह न  सधसकने वाला कार्य संगठन की शक्ति से संपन्न होता है आज हमें मिशन की आवश्यकता है ताकि उस स्थिति पर आ सके जहां से सम्मान का  जीवन संभव हो सके ।
किसी भी संगठन में दो बातों का होना आवश्यक है जो दिखने में साधारण मालूम पड़ती हैं उनमें एक यह है कि सार्वजनिक पैसे का अत्यंत पवित्र धरोहर मान कर उस की एक-एक  पाई का इतनी सावधानी से प्रयोग करना की जांच करने वाले को कोई खोट ना दिखाई पड़े और निजी हित में उस धन का प्रयोग करना गौ मांस भक्षण के समान होएवं अपने को हर क्षेत्र में अग्रणी करने वाले संगठन सेवक का बाना पहनने वाले फोटो खिंचाने माइक पर छाने वाले ज्यादा तो कुछ संगठनों में  पाते  नहीं बल्कि अपने ही हाथों अपना श्राद्ध तर्पण कर जाते है और ऐसे लोग समाज में घटिया समझे जाते ह।
नेता बनने के लिए लालायित लोग  कुछ पातें तो नहीं बल्कि जो उनके हाथ में भी होता है वह भी चला जाता है और इनके अनेक प्रतिस्पर्धी विरोधी उपज पढ़ते हैं और ऐसे विघटनो  का परिणाम संगठनों को भी बदनाम करता है मिशन में भूतकाल की योग्यता का नहीं बल्कि उस सज्जनता का महत्व है जिसके साथ नमृता और सज्जनता जुड़ी हो किसी संगठन में कार्य करने के लिए भूतकाल की अर्जित योग्यताओं वरिष्ठ नेताओं को भुलाकर मिशन की गरिमा के साथ कार्य करना होता है कर्मचारी संगठनों में नेतागिरी झाड़ने वाले कुछ पातें नहीं बल्कि अपनी छवि को धूमिल कर एक कलंक जीवन भर ढोते  रहते हैं संगठन का सदस्य मिशन का अंग अवयव होने के कारण ही हम सम्मान पाते हैं प्रत्येक कार्यकर्ता को सार्वजनिक प्रयोजनों में "मैं"शब्द का प्रयोग न करके हम  या  हम लोग का करना चाहिए मैं शब्द का प्रयोग तो हो सकता है किंतु कार्य  तो सभी के सम्मिलित प्रयत्नों से बन पड़ा है इसलिए सभी के मिले जुले होने का संवाद होना चाहिए।
निश्चय ही हम शिक्षा के छेत्र में अध्यापकीय  कार्य कर रहे हैं यह हमारे लिए संक्रमण काल है जब शासन अपनी स्पष्ट नीतियों से हमें भ्रमित कर रही है ऐसी विषम परिस्थितियों में चारों तरफ से प्रयास होने चाहिए स्वतंत्रता के महा समर में हर ओर से आवाज आई थी यहां भी कुछ ऐसे  ही प्रयत्नों की आवश्यकता है कि हम शिक्षक की गरिमा के साथ आवाहन करते हैं कि शिक्षक समुदाय में प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है हम आवाहन करते हैं जो जहां भी हैं जिस  प्रकार से भी हैं अपने संघर्ष का स्वर मुखरित करें जिस कला में हैं उस कला क को साधन बनाते हुए अध्यापक हित के संघर्ष को आवाज दे  ताकि शासन के ष ड यंत्रो  के अंतर्गत अध्यापकों के साथ छठवें वेतनमान के रुप में की जा रही विसंगति को संगति में बदलने में सफल हो सके ।

-अतुल सिंह परिहार
शासकीय अध्यापक संगठन सतना

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