बात विसंगति की :-
जब से केबिनेट की संक्षेपिका वायरल हुई है, तब से विसंगति की चर्चा जोरों पर चल रही है । फिर अचानक शासन द्वारा कोर्ट में जवाब ( स्पष्टीकरण ) प्रस्तुत करके आग में घी का काम कर दिया ।
इस मैटर पर लगातार अधिकारी वर्ग से चर्चा होती रही है । और उनके द्वारा बिना विसंगति के आदेश होने का आश्वासन दिया जा रहा है । वो भी पूरे विश्वास के साथ । ये सब बताने के बाद भी ।
अब बात आती है ये विश्वास और भरोसा टूटने की । तो इसका खामियाजा तो भुगतना ही होगा । दोनों पक्षों को ।
बात विरोध और आरोप की :-
कुछ साथी लगातार संभावित विसंगति पर ध्यानाकर्षण करा रहे हैं । उनका साधुवाद । पर कुछ साथी उनकी पोस्टों पर अनर्गल आरोप भी लगा रहे हैं । वो ठीक नहीं । व्यक्तिगत टीका टिप्पणी भी कर रहे हैं, ये उचित नहीं ।
हम तो मिल भी रहे हैं, बता और जता भी रहे हैं । हर स्तर पर सक्रियता बनाये हुए हैं । पर जब आरोप वाली बात आती है तो मन खराब हो जाता है । की इतना करने के बाद भी लोग क्या क्या बोल देते हैं । कई बार लगता है कि भगाओ ये सब और घर परिवार को भी देखो अब तो । फिर सोचने में आता है कि अगर सब बोल रहे हैं कि जीत देखो या हार । तो ये भी देख लेते हैं । पर इतना सुकून जरूर रहता है कि इमानदारी से ही किया है अभी तक जो भी किया है ।
जीत हमारी तो हार भी स्वीकार :-
चूँकि आगाज हमने किया था, भले ही बाद में सब साथ आ गए हों । इसलिए यदि कोई विसंगति होती है या कोई धोखा मिलता है शासन की तरफ से तो वो पूरी तरह से स्वीकार है ।
पर मेरा उन साथियों से जरूर इतना कहना है कि आरोप लगाने के पहले तथ्य एकत्र कर लो और दिखा दो तो सही रहता है । तथ्य दिखा दोगे तो फिर कोई मुँह खोल ही नहीं पाएगा ।
धन्यवाद ।
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