Mukesh Kumar Sharma -
इन दिनों मध्यप्रदेश में कक्षा- 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षा के मूल्यांकन का कार्य सभी जिला केन्द्रों पर चल रहा है। जिसमें मूल्यांकनकर्ता अध्यापकों का जमकर शोषण हो रहा है।
मूल्यांकनकर्ता अध्यापकों को प्रति काॅपी 11रुपये के हिसाब से पारिश्रमिक दिया जा रहा है, जो कि बहुत ही कम है। पङोसी राज्य राजस्थान में प्रति काॅपी 15रुपये दिए जा रहे हैं। कुछ राज्यों में तो 20 से 25रुपये प्रति काॅपी भी दिया जा रहा है।
राजस्थान सहित अधिकांश राज्यों में बोर्ड परीक्षाओं की काॅपियों को घर ले जाकर चैक करने की स्वतंत्रता है। लेकिन मध्यप्रदेश सरकार की नजर में अध्यापक चोर और बेईमान है, इसलिए यहाँ काॅपियाँ चैक करने के लिए दूर दराज के गाँवों में रहने वाले अध्यापकों को भी रोज जिला केन्द्र पर आना पङता है। इस प्रक्रिया में दूर के गाँवों से आने वाले अध्यापकों के चार-पाँच घण्टे तो रोज आवागमन में ही नष्ट हो जाते हैं।
जिला केन्द्र पर बोर्ड परीक्षाओं के मूल्यांकन का कार्य डेढ से दो माह तक चलता है। इस लम्बी अवधि के दौरान नेता और अफसरों की जी हजूरी करने वाले कामचोर अध्यापक तो अपनी ड्यूटी कैंसिल करवा लेते हैं। और बेचारे ईमानदार अध्यापक शोषण की चक्की में पिसते रहते हैं।
काॅपी चैक करने वाले अध्यापकों को 60रुपये रोज के हिसाब से दैनिक भत्ता मिलता है, जो कि अपर्याप्त है।
मूल्यांकन की इस दो महीने वाली लम्बी अवधि के दौरान बेचारे ईमानदार अध्यापक बंधुआ मजदूर की तरह काम करने के लिए विवश हो जाते हैं। इस दौरान घर पर आने वाले आवश्यक कार्यों, शादी समारोह में शामिल होने या चिकित्सा संबंधी अति आवश्यक कार्य की छुट्टी के लिए भी ईमानदार अध्यापकों को अधिकारियों के सामने गिङगिङाना पङता है।
यदि शासन चाहे तो जिलाकेन्द्र और उसके निकटस्थ स्थानों पर रहने वाले रिटायर्ड अध्यापक या प्राइवेट स्कूलों के अनुभवी अध्यापकों का सहयोग लेकर मूल्यांकन की इस लम्बी प्रक्रिया को जल्दी समाप्त कर सकता है।
अनेक रिटायर्ड अध्यापक और निजी स्कूलों में कार्यरत अनुभवी अध्यापक मूल्यांकन कार्य में स्वेच्छा से सहभागी हो सकते हैं, लेकिन शासन की अनावश्यक कठोर नीतियों के कारण ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है। लगता है कि शासन ने तो सिर्फ मजबूर अध्यापकों का ही शोषण करने की प्रतिज्ञा ले रखी है।
मोबाइल आज की जीवनशैली का एक अनिवार्य अंग है। लेकिन मूल्यांकन के दौरान रोज मोबाईल भी बाहर रखवाना पूरी तरह अमानवीय है।
शासन की इन शोषणकारी नीतियों के कारण ही अध्यापक मूल्यांकन करने से कतरा रहे है। इसलिए अब जल्दी से जल्दी मूल्यांकन कार्य सम्पन्न करवाने के लिए कई जगह अधिकारी लोग नवनियुक्त संविदा शिक्षकों के ऊपर दबाव डालकर उनसे मूल्यांकन करवा रहे हैं। जबकि संविदा शिक्षक तीन साल का अनुभव ना होने के कारण अभी मूल्यांकन की पात्रता नहीं रखते हैं।
जिला केन्द्रों पर मूल्यांकन होने से केन्द्राध्यक्ष, विषय प्रमुख और डिप्टी को प्रतिदिन मोटा भत्ता मिलता है। इसलिए ये लोग नहीं चाहते कि इस व्यवस्था में सुधार हो। क्योंकि यदि अध्यापकों को ये काॅपियाँ घर ले जाकर चैक करने की स्वतंत्रता दी जाए तो इन फालतू अफसरों को मिलने वाली खैरात बंद हो जाएगी।
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