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एक क्रान्तिकारी कभी झुकता नही : कौशल क्रांतिकारी

Wednesday, 20 April 2016

एक क्रान्तिकारी कभी झुकता नही.... युद्ध के मेदान मे पीछे पलटकर नही देखता.... उसका लक्ष्य सदैव आगे की और बढना ही होता है जहाँ तक मेरा विरोध का सवाल है।तो कलयुग में सत्य का ही सबसे अधिक विरोध होता है।विरोध के डर से एक कलमकार शांति से चुपचाप शांत होकर बैठ जाये ये हो नही सकता ।भयविहीन होकर कलम की क्रांति से इसी तरह सत्य का आईना दिखाता रहूगा।एक कलमकार विचारो की क्रांति पैदा करता है।

विरोध की परवाह नही......विरोध मुकद्दर वालो का होता है।......वरन जी हजुरीयो का विरोध नही होता .....मैं कृष्ण के अनुसार गीता के उपदेश के अनुसार इस युध्द के मैदान में अर्जुन की भांति लड़ता रहूगा.....मुझे विश्वास है विजय अवश्य होगी।

यही कारण है कि मैने क्रांति की कलम से एकता के साथ आगे बढने का न्योता सभी संघो को भेजता रहा हूँ।इसको कलम और क्रान्ति की कमजोरी समझने की भूल मत करना! यह एक समझदार कलमकार का बडप्पन है कि वह अपनी कलम को अध्यापक समाज के हित मे सामंजस्य पेदा करने का प्रयास कर रहा है। समस्त संघो को इस अदभुद पहल की और अपनी प्रतिस्पर्धा छोडकर हाथ बढाना चाहिए ।

नादानी करना छोडिए.... नाम की शोहरत की वासना त्यागकर आगे की सोचिए....। जो नाम की और दाम की चमक पाने की लालसा लिए विधानसभा की दहलीज पर जा पहूंचे।उनके पास आज कुछ है तो विधायक का तमगा है।मगर अध्यापक और स्वस्थ समाज मे उनका कितना आदर बचा है ।जरा उनसे अपने दिल पर हाथ रखकर सच पूछिए या उन्हे सच उगलवाने वाली मशीन पर खडा कर दीजिए । उनके मन से उगलता हुआ सच यही बया करेगा कि काश मे अध्यापक और उसका प्रान्ताध्यक्ष ही होता तो अच्छा था।क्योकि जो वतॅमान की कुसीॅ है चंद दिनो की हैसियत है।
यह कडवा सत्य है....इसीलिये मै कहता हूँ कि स्वयं की बंदूक से अपनी आत्महत्या करने की मत सोचो ।सरकार विसंगति की बंदूक से वैसे ही मारना चाहती है।
इसलिए संघो के जो-जो भी प्रातांध्यक्ष अगर राजनीतिक चकाचौंध के स्वप्न सजा रहे है।वे स्वप्न देखना बन्द करके हकीकत के धरातल पर आ जाए।यह आज आपको एकता के लिए पुकार रहा है। कल आप रहे ना रहे क्योकि आम सामान्य अध्यापक आपको धिक्कार रहा है।
क्योकि उसके सपने अधूरे है....उसकी जेब खाली है...उसके बीवी-बच्चे अच्छे दिनो के इंतजार मे टकटकी लगाए बैठे है...यही एक अध्यापक की वक्त की मांग है।
एक बात और ध्यान रखना आम अध्यापको का जमीर अभी ठंडा होकर जिन्दा था,  आंदोलन के परिणाम शून्य रहे जिससे अध्यापको का जमीर गमॅ होकर फिर से जाग गया है।इसलिए वक्त की नजाकत को भापकर आज को पहचान लो....और हो जाओ एकजुट....टूट पडो अत्याचार करने वाले...शोषण करने वाली सरकार के खिलाफ आन्दोलन का शंखनाद हो चुका है।सब बातो को तिलाजंलि दे।आओ मिलकर इतिहास रचे।मित्रो इसे आलोचना न समझे अपितु आंदोलन हेतु सभी को एकजुटता के लिये आगाज किया है।फिर भी कुछ गलत हो तो क्षमा।
     अध्यापक एकता जिंदाबाद

"रामधनुष के बल पर ही तो सीता लंका से आती है ,
जब अपने सिक्के खोटे हो तो शासन की बन जाती है।"
कौशल क्रांतिकारी चम्बल

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