आस का दावा कि हमने अध्यापकों को सितम्बर 17 में मिलने बाले वेतन को जनवरी 16 को दिलवाया...कितना सफेद झूठ बोला जा रहा है आज़ाद संघ के अध्यक्ष भरत पटेल और जावेद खान द्वारा जबकि सच्चाई इसके उलट है,..आओ हम सब मिलकर इस बारे में आस के झूठ का पर्दाफाश करें..आप सब अच्छी तरह जानते है कि 2013 में आंदोलन का चेहरा राज्य अध्यापक संघ था इस बार के आज़ाद अध्यापक संघ की तरह उस समय मुख्य्मंत्री ने राज्य की वित्तीय स्थिति के मद्देनज़र सबके लिए शिक्षकों के समान वेतन देने के लिए किस्तों में वेतन देने का फैसला लिया था उस समय के आंदोलन के चेहरे मुरलीधर पाटीदार की सहमति से 4 सितम्बर 2013 के उक्त आदेश के तहत प्रदेश के अध्यापकों को सितम्बर 13 में पहली अंतरिम राहत की क़िस्त,सितम्बर 14 में दूसरी क़िस्त ,सित0 15 में तीसरी क़िस्त और सितम्बर 16 में चौथी क़िस्त देने के साथ सितम्बर 17 में देय अंतरिम किस्तों का समायोजन सितम्बर 13 से वेतन पुनरीक्षण कर करना था और अंतरिम राहत की राशि का समायोजन कर अन्तर की राशि का भुगतान एरियर के रूप में होना था...उस समय भी रास को छोड़ अन्य सहयोगी संगठनों ने (विशेष रूप से शासकीय अध्यापक संगठन ने) सहायक अध्यापक और वरिष्ठ अध्यापकों की अंतरिम राहत की गणना कम करने के सम्बन्ध में अभ्यावेदन प्रस्तुत कर IR की सही गणना की मांग पुरजोर तरीके से उठाई थी तब वित्त विभाग के अधिकारीयों का तर्क था इस वेतन में जो भी IR दी जा रही है यदि वो सही नहीँ तो समायोजन के समय वह एरियर के रूप में प्रदाय की जायेगी इसलिए इस मुद्दे का समाधान अभी संभव नहीँ क्योंकि अंतरिम राहत अपरिवर्तनीय है एक बार जो मिल गयी वो अंत तक वही रहेगी और पदोन्नति में भी उसमें बदलाव नहीँ होगा और ऐसा हुआ भी इसके पीछे समायोजन के समय गणना में विसंगति न हो का तर्क दिया गया...परंतु इस बार मिशन 2015 शिक्षा विभाग में संविलियन का आगाज़ करने बाले आज़ाद अध्यापक संघ के प्रमुख भरत पटेल ने 2013 में अधिकारीयों के द्वारा सरकार के इशारे और तत्कालीन आंदोलन के प्रमुख चेहरे की रजामंदी पर हुई विसंगति जिसमें IR की गलत गणना भी शामिल थी को आधार बना आंदोलन का आगाज़ किया ..हम सबने और शासकीय अध्यापक संघ ने अध्यापक हित को तब्बजो देते हुए स्व प्रेरणा से उक्त आंदोलन में न केवल भागीदारी की बरन शासकीय अध्यापक संगठन के अध्यक्ष बृजेश शर्मा ,प्रमुख महामंत्री आरिफ़ अंजुम सहित कई पदाधिकारियों ने जेल की यात्रा भी की...जब सारे नेता जेल में थे तब तमाम प्रतिबंधों के बाबजूद हमने लाल घाटी पर तिरंगा यात्रा को सफल बनाने में कोई कसर नहीँ छोड़ी पर तिरंगा यात्रा के सफल आयोजन के बाद श्रेय की राजनीती के चलते आज़ाद अध्यापक संघ की सोच बदल गयी जिसकी झलक मुख्यमंत्री जी के यहां हुई बैठकों में साफ़ झलकी और जरुरत पड़ने पर संयुक्त मोर्चा का हिस्सा का हिस्सा बने और एक रणनीति के चलते अपनी राह अलग चुन ली और यही से प्रदेश के अध्यापकों की शोषण की पटकथा की इबारत लिखना शुरू हो गयी...यदि आज़ाद संघ संयुक्त मोर्चा का हिस्सा रहता तो वो सरकार से अपने तय एजेंडे से हटकर कोई वह कोई काम नहीँ कर सकता था क्योंकि अन्य संघ के जानकार साथियों के रहते ये सम्भव नहीँ होता इसलिए एक छोटी सी बात को तिल का ताड़ बना एक सोची समझी रणनीति के चलते एकला चलो की नीति अपनायी और सरकार से नज़दीकियां हासिल करने के लिए एक गुपचुप समझोता करने का काम किया जिसके तहत 2013 की विसंगति तो दूर की बात एक नई विसंगति तैयार कर दी जिससे हर अध्यापक संवर्ग के व्यक्ति की ओसतन2 लाख रुपयों का नुक्सान हो रहा है और बेशर्मी की हद तो देखो आस और उसके चेहरे की कि लगातार एक बात कह रहे हैं कि अन्य संगठनों ने जहां अध्यापकों को 2017 तक के लिए गिरवी रख दिया था वहाँ हमने जनवरी 16 में 6वां वेतन दिलाया तो गुनाह किया....आदि आदि झूठ जय आस के नारों के बीच सोशल मीडिया में लगातार चल रहे है जबकि आस ने इस बार जो किया वो शायद आम अध्यापक समझ नहीँ पा रह हैं...सहायक अध्यापकों और वरिष्ठ अध्यापकों की विसंगति कोदूर करने की जगह 2013 के 4 सितम्बर के जिस आदेश के तहत हमारे वेतन का पुनरीक्षण होना था और उसमें अंतरिम राहत का समायोजन होना था पर आस के चेहरे ने आम अध्यापकों को एक ऐसा जख्म देने का काम सरकार के इशारे और अपनी भविष्य की राजनैतिक राह आसान करने के लिए किया है जो आम अध्यापक के हितों पर बहुत बड़ा कुठाराघात है ...दोस्तों पिछली बार आंदोलन के चेहरे के कारण तात्कालिक रूप से ही सही सहायक अध्यापकों और वरिष्ट अध्यापकों के साथ वेतन विसंगति हुई और गलत गणना का काम तो इस बार के आंदोलन के चेहरे ने उससे एक क़दम आगे बढ़कर 4 सितम्बर के जिस आदेश के तहत हमारे वेतन का पुनरीक्षण सितम्बर 13 से होना था और अब तक मिली अंतरिम राहत का समायोजन उसमें होना था पर एक गुपचुप समझोता कर 1 जनवरी 16 से 6वां दिलाने के नाम पर वेतन पुनरीक्षण 2013 से न करने पर रजामंदी देने का काम किया...इस कदम से सरकार को करीब 450 करोड़ का लाभ हुआ...यहां एक तथ्य और विचार करने योग्य है की आस के लोग लगातार कह रहे हैं की हमने 17 की जगह 16 में 6वां वेतन दिलाया तो यहाँ सवाल यही हैकि जो वेतनमिला वो 4 सितम्बर के आदेश के तहत ही तो मिला फिर आस के लोगों ने वेतन पुनरीक्षण के मुद्दे पर ऐसा क्या समझोता कियाकि सरकार हमारा वेतन पुनरीक्षण जो 4 सितम्बर 13 के आदेश के तहत करती अब नहीँ कर रही है....क्या इसी लिए प्रदेश कशोषित पीड़ित अध्यापकों ने आस को समर्थन दिया था?2013 में उस समय आंदोलन के चेहरे ने जो किया यदि वो गुनाह तो इस बार अपनी राजनैतिक राह आसान करने के लिए 2013 विसंगति सुधार की बात करते करते जो समझोता किया वो गुनाह ये अजीम माना जायेगा....इस बार बहुत बड़ा धोखा आम अध्यापकों के साथ होने जा रहा है.....इसलिए अभी तक वेतन गणना पत्रक आदेश जारी नहीँ...आस ने आम अध्यापकों के भरोसे को तोड़ और सरकार के करीब 450 करोड़ (जो अध्यापक का हक़ था )बचाने का काम किया जा रहा है.....जिसका पुरजोर विरोध होना चाहिए.............सभी IT cell के साथी इस बात को आगे forword कर आस की हक़ीक़त आम अध्यापकों में लाने का काम करे ताकि आम अध्यापक समझ सके कि उसके हितों के साथ कैसा सौदा किया है स्वघोषित शेर और उसके संगठन ने...।
महेंद्र पांडे जी की कलम से खरी खरी: अध्यापक वेब
Thursday, 21 April 2016
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