प्रदेश के सबसे पुराने और एक समय सबसे ताकतवर माने जाने वाले संघ ने वर्चस्व की नई मुहीम छेड़ दी है। जहाँ एक ओर मोर्चा छटवें वेतन की लड़ाई के आंदोलन की घोषणा कर चूका है और आज़ाद अध्यापक संघ संविलियन के महा आन्दोलन की रणनीति का खाका खीच रहा है वही दूसरी ओर राज्य अध्यापक संघ इन सबसे बेखबर अपने बिखरे कुनबे को समेटने की मुहिम में लगा है। इसी कड़ी में शिक्षा क्रांति यात्रा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे के बीच संघ के पदाधिकारी अन्य संघो के सदस्यों का राज्य अध्यापक संघ में विलय की मुहिम चलाने में लगे है।
जहाँ एक ओर प्रदेश का अध्यापक शिक्षा विभाग में संविलियन की मुहिम चलाने योजना बना रहा है वहीँ रास के पदाधिकारी अध्यापको का विभाग में सविलियन को छोड़ संघ में विलय कराने में जुट गए हैं।
इसी खबर में हास्यास्पद स्थिति तो तब बन गई जब दावे के अनुसार विलय करने वाले अध्यापको ने प्रेस नोट जारी कर सबसे पुराने संघ के पदाधिकारी की पोल खोल दी।
एक विधायक को जन्म देने वाले इस जुझारू संघ की इस मुहिम से प्रदेश में रास के प्रति जोड़ तोड़ कर संघ बचाने की स्थिति में आ जाने का सन्देश जाना चिंताजनक है।
अन्य संघ भी विचार करें।
एक गुमनाम अध्यापक
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