आज लगता हे की अध्यापक जगत के सभी धुरंधर नेता सोशल मिडिया से ही बिना हींग और फिटकरी लगाये सारी समस्याओं का समाधान ले आएंगे, जबकि 85% अध्यापकों के रहनुमा बनने का दावा करने वाला संघ भी अपने पदाधिकारियो की पोस्ट पर 100 कॉमेंट लेकर नहीं आ पाता तो भाई ये हे आपकी और सभी मोर्चो की सोशल मिडिया की हकीकत ।
आज भले ही किसी भी संघ ने अध्यापको के लिए कुछ भी ठोस ना किया हो, पर ये नेता और इनके चमचे आपस में रोज ही कुत्ते बिल्ली की तरह लड़ते हुए देखे जा सकते हे की हमारा संघ या नेता तुम्हारे संघ या नेता से अच्छा हे । और बेचारा अध्यापक अपने भाग्य विधाताओं को इनके शब्दों की बाजीगरी के साथ देखकर अपनी वर्तमान दुर्दशा पर आसु बहा रहा हे ।
आखिर ये कहा जा रहे हे हम, क्या ऐसे ही दूर होगी हमारी विसंगतियां, क्या इस तरह से ही हम हासिल कर पाएंगे शिक्षा विभाग ।
मेरे तथाकथित नेताओ, अगर तुम सच में हम अध्यापकों के रहनुमा हो तो भले ही आपस में कितने ही मतभेद हो, पर जब भी बात अध्यापक हित की आए तो हम सभी अपने सुर में सुर मिला कर एक हो जाये । अगर अध्यापको के इस कठिन समय में भी आप अध्यापकों का हित नहीं कर सकते तो फिर तुम्हे हमारा नेता कहलाने का भी कोई हक़ नहीं हे, और हमें भी तुम्हे त्यागने में कोई संकोच नहीं होगा ।
No comments:
Post a Comment