🐐गणना पत्रक बकरी खा गई🐐
सगाई हो गई
शादी नहीं हो रही
छटे के चक्कर में
ऐसी हालत हो रही
व्याकुल सारे अध्यापक
विरह आग में जल रहे
पाया अभी कुछ नहीं
खाली हाथ मल रहे
गणना पत्रक बकरी
खा गई
बकरी खा गया शेर
टेबल टेबल फ़ाइल
घूमे
नेता हमरे ढेर
सत्रह साल से बने हुए है
कोल्हू के हम बैल
शिक्षा से कुछ निकला नहीं
बस निकला हमरा तेल
दीवाली की चमक
फीकी
होली रही बदरंग
फाग कभी गा न सके
मरघट चली उमंग
कूक कोयल की
काटन दौड़े
बैरी हुआ बसंत
अब भी छटा न मिले
तो हो जाना सब संत
होकर सारे संत सब
चले चलो उज्जैन
बरसो भटके मन को
मिल जाए शायद चैन
🌵इन्द्रजीतसिंह नाथावत बखतगढ़ धार
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