मुश्ताक खान की कलम से
पंचायत विभाग बनाम शिक्षा विभाग
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा पंचायत विभाग का गठन कर समस्त ग्राम पंचायतो में ग्राम पंचायत स्टाफ को नियुक्त किया गया है जिसका कार्य ग्राम स्तरीय समस्त दायित्वों का निर्वाहन करना है।
दूसरी और प्रत्येक ग्राम में स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा प्राथमिक व माध्यमिक विद्यालय खोले गए है जिनमे ग्राम के बच्चों को शिक्षित कर साक्षर भविष्य की परिकल्पना को पूर्ण किये जाने का लक्ष्य है।
परंतु विगत कुछ वर्षो से ग्रामीण क्षेत्रो व शहरी क्षेत्रो के विद्यालय के मास्टरों को शासन व शिक्षा विभाग ने शिक्षण कार्य से दूर कर साक्षर भविष्य की चिंता किये बगैर ग्राम पंचायत कार्यो में ऐसा उलझाया है की शिक्षक चाहकर भी बच्चों को पूर्ण रूप से दक्ष नही कर पा रहे है और इन गैर शैक्षणिक कार्यो के बोझ के चलते आज ग्रामीण विद्यालयो में बच्चे मध्यान्ह भोजन करने व दिनभर अपने मास्टर के शिक्षण कार्य करने हेतु फ्री होने का इन्तजार करते रहते है और मास्टर ग्राम पंचायत के कार्यो में उलझा रहता है।
कुछ ऐसे कार्य जो ग्राम पंचायत के है परंतु मास्टरों से करवाये जा रहे है जबकि ग्राम पंचायतो में वेतन पाने वाले स्टाफ नियुक्त किये गए है। परंतु उनका उपयोग न के बराबर किया जा रहा है--
1.(ग्राम समग्र परिवार आई डी दस्तावेजी एकत्रीकरण)उपरोक्त कार्य पंचायत सचिव व सह सचिव का है परंतु मास्टर दस्तावेज एकत्रीकरण कर रहे है बच्चे भोजन कर रहे है सचिव पंचायत आफिस में बैठकर दस्तावेज का इन्तजार कर रहे है नुकसान शाला में दर्ज बच्चे भुगत रहे है।
2. (आधार कार्ड निर्माण)- ग्राम स्तर पर आधार कार्ड केम्प ग्राम पंचायत लगवा कर लक्ष्य पूरा कर सकती है परंतु मास्टर ग्राम के बच्चों को लेजाकर फोटो खिचवा रहे है।
3. (0 से 14 वर्ष के बच्चों का सर्वे) 0 से 14 वर्ष के बच्चों के सर्वे के अतिरिक्त पंचायत में मारने वाले पैदा होने वाले व ग्राम छोड़ने वाले परिवार नए परिवार का सर्वे कर ग्राम पंचायत को जानकारी देना की उनके गाव में कितने परिवार है और कितने चले गए जबकि ये कार्य भी पंचायत सचिवो का है और मास्टर को सिर्फ 0 से 14 के बच्चों का सर्वे करना आवश्यक है ताकि कोई बच्चा स्कूल जाने से वंचित न रह सके।
4.(ग्रामीण क्षेत्र में मास्टरों की blo ड्यूटी)- प्रत्येक ग्राम में परिसीमन पश्चात ग्रामनुसार एक एक स्थानीय शाला के मास्टर को blo नियुक्त किया गया है जो की वर्ष में कई माह इस कार्य में लगा रहता है और स्कूल के बच्चे blo कार्य में लगे मास्टरों का इन्तजार करते रहते है जबकि ये कार्य पंचायत सचिव को दिया जाना चाहिए क्योंकि ग्राम की जानकारी सचिव की अपेक्षा मास्टर को कम होती है व सचिव इस कार्य को आसानी से कर सकते है एवं निर्वाचन विभाग को बार बार ड्यूटी लगाने से भी मुक्ति मिल सकती है एवं 12 महीने नवीन नाम जोड़े जा सकते है व हटाये जा सकते है ग्राम पंचायत में समस्त फॉर्म उपलब्ध करवा दिए जाए और मतदाता सूचि सतत अपडेट होती रहे ये ज्यादा आसान होगा इस से मास्टर स्कूलो में बच्चों को पूर्ण समय प्रदान कर पाएंगे। जब सचिव मास्टरों के बराबर वेतन व भत्ते ले रहे है तो ये कार्य उनसे क्यों नही लिया जाता।
5. (गरीबी रेखा वाले परिवारो की जानकारी)-उक्त कार्य भी मास्टरों को सौंपा गया है जबकि खाद्य विभाग को करना चाहिए।
6.(खुले में शौच करने वालो को रोकना)- एक नवीन आदेश जो शिक्षा विभाग के मानसिक विकलांग अधिकारियो की पोल खोलता है क्या उपरोक्त कार्य ईश्वर समान गुरु से करवाना शोभा देगा इन्हें जो कुछ लोगो ने ऐसे आदेश कर सुबह व शाम को गुरुओ को शौच करने वालो को रोकने हेतु तैनात कर दिया क्या ग्रामीण क्षेत्रो में मास्टर ऐसी जगह जा सकते है?? जहाँ गाँव की बहु बेटी व पुरुष शौच करने जाते हो क्या ऐसे कार्यो में ग्रामीण लोग सहयोग करेंगे? बिलकुल नही बल्कि ऐसे कार्य करने से मास्टरों की चारित्रिक, शारीरिक, मानसिक, हानि ही संभव होगी।
यदि उक्त कार्य करवाना आवश्यक था तो पंचायत स्टाफ को ग्राम चोकीदार को या ग्राम की महिला पुरुष समिति बना कर क्यों नही करवाया जा रहा जबकि ऐसा करना आसान होगा न कि मास्टर को ऐसी जगह भेजकर अनचाही समस्याओ से अवगत करवाना उचित होगा।
यदि मूल विभाग को सबंधित जिम्मेदारी दे दी जाए तो मास्टर अपने नोनिहालो को उचित शिक्षा दीक्षा प्रदान कर सकता है और यदि इसी तरह के गैर शैक्षणिक कार्य मास्टरों से करवाये जाते रहे तो प्रदेश का भविष्य कभी पूर्ण साक्षरता को पार नही कर सकेगा प्रशासनिक गलियारों में बैठने वालो के लिए उपरोक्त विषय चिंतनीय है।
मुश्ताक़ खान
भोपाल।
मोबाइल नंबर-9179613685 —
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