जावेद खान⬇
सोशल मिडिया के सुधि मित्रो से दो शब्द
अध्यापको में एक जज़्बा है , साथ ही एक यकीन भी है यह सरकार हमें बिना लड़े किसी भी हालत में अपना हक़ नहीं देगी ।
आपकी भावनाये हमसे और हमारी आपसे अलग बिलकुल नहीं है बेशक बड़ी जंग लड़नी होगी ।
लेकिन इसकी सफलता के लिए नीति निर्धारण में आप सहयोग कीजिये ।
आंदोलन की विषयवस्तु केवल गणना पत्रक हो या एक ही बार में शिक्षा विभाग के लिए भी लड़ा जा सकता है ?
आज लोगो में केवल गणना पत्रक के प्रति आंदोलन का विचार है यदि यही एक विषय है तो हमें बड़े आंदोलन की
अपेक्षा विकल्पों की बात करना चाहिए ये मेरा निजी मानना है ।
क्योंकि अध्यापको की ऊर्जा का हास् समेटने में बहुत वक्त लग जायेगा , उस वक्त हम उस आक्रमकता को खो देंगे जब विभाग के लिए हमें अध्यापको की जरूरत होगी । मेरी बात का मतलब यह हरगिज़ नहीं की हमें आंदोलन नहीं करना है वरन मेरा आशय यह है की अध्यापको को कम रिस्क में ज्यादा प्रॉफिट के सिद्धान्त पर मुखर होना चाहिए ।
इस समय ज़मीनी हकीकत सोशल मिडिया से बहुत अलग है ।
आप इस पोस्ट पर अपने सुझाव सकारात्मक मंथननके साथ देवे । अब तक जो आलोचनाये हुई है उसका मुख्य कारन अध्यापको की आर्थिक क्षति और अन्य संघो द्वारा आजाद के दुष्प्रचार के कारण हुई है । लेकिन जब एक नेतृत्व से अपेक्षाएं बढ़ जाती है और त्वरित रूप से उसकी और से कोई कार्यक्रम नहीं दिया जाता है तो साथ देने वालो में संशय आ जाता है । जबकि नेतृत्वकर्ता को बहुत बड़ी जंग की तैयारियों , कूटनीति , लड़नेवालो की मानसिकता , आपका सम्बल सहयोग इत्यादि की दरकार होती है और इसके लिए समय की आवश्यकता भी ।
आज हमारे सामने सवाल यह नहीं है की आंदोलन कैसे किया जाये । बल्कि सवाल यह है की आंदोलन की समग्र सफलता अथवा असफलता के बिच अध्यापको को अग्रिम आर्थिक हानिं से कैसे बचाया जाये ।
आजाद की आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए हमें आपके साथ की जरुरत है । सेवा को राजनीति बनाकर धूर्तता दिखा रहे लोगो की तो हमें कतई जरूरत नहीं है ।
आजाद अध्यापक संघ के साथ आपने वह कर दिखाया है जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी । तो आजाद के रणनीतिकारों पर आप भरोसा रखो हम वो कर गुजरेंगे जिसकी थाह लेना किसी सरकार के बस की बात भी नहीं है ।
आप जितना हमें भला बुरा कहते हो उससे हमें इस बात का दुःख नहीं होता की आप ऐसा क्यों कह रहे हो । बल्कि दुःख होता है की विपरीत से विपरीत परिस्थितयो में लड़कर पताका लहरा देने वाले हमारे लाल घाटी के योध्दाओ का पौरष अशांत क्यों हो गया है ।
अपने आपको स्थिर करो । हम तैयार है । आगे मिशन अधूरा है । उसे पूरा कर लो । फिर चाहो तो खूब गालिया दे लेना यह सोचकर की आजाद ने 1998 से जिम्मेदारी क्यों नहीं उठाई ?
जब तेरे ज़ुल्मो की हवा आती है
मेरे दिल से अक्सर ये सदा आती है
जब कोई कराहता है दर्द से शब् भर
खुदा ही जाने कैसे हर दर्द की दवा आती है ।
जय आजाद
आपका भाई जावेद खान
आस के साथ आपने वह कर दिखाया है जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी : जावेद खान
Saturday, 25 June 2016
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आजाद अध्यापक संघ
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