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सामान कार्य सामान वेतन थी हमारी
**** मुख्य मांग *****
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साथियों हमारी मुख्य मांग सामान कार्य के बदले सामान वेतन थी। शुरू से ही सामान कार्य-सामान वेतन की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे थे।
आंदोलन 2013 मुख्यतः सामान कार्य- सामान वेतन की मांग को लेकर हुआ था।आंदोलन ने इतनी गति पकड़ी थी की तमाम आर्थिक परेशानियों के बाद भी सरकार को सामान वेतन की कल्पना पर विचार करना पड़ा।
आर्थिक भार की आड़ लेकर सरकार ने शिक्षक के सामान वेतन की संरचना को चार किस्तों में देने का निर्णय लिया ।
जो क्रमशः इस प्रकार थी
सितम्बर 2013 प्रथम क़िस्त
सितम्बर 2014 दूसरी क़िस्त
सितम्बर 2015 तीसरी क़िस्त
सितम्बर 2016 को चौथी क़िस्त
जिसमे से03 किस्तों का भुगतान हो चूका है मात्र 01 शेष है।
इसी बीच 2013के सरकार के निर्णय को धोखा बताते हुए आंदोलन 2015 शुरू हुआ जो मूलतः शिक्षक बनने की शर्त को लेकर बना था परंतु न जाने कैसे और कब छटवें वेतनमान की मांग में बदल गया ।
जबकि अध्यापक समाज की मांग छटवां वेतनमान कभी नहीं थी क्योकिं वो तो प्रदेश में 2006 से ही मिल गया था अन्य कर्मचरियों को।
अतः अध्यापक संगठन ने हमेशा शिक्षक के सामान वेतनमान की मांग की थी।
2013 में04 किस्तों के आदेश में स्पस्ट घोषित किया गया था कि शिक्षक के सामान वेतन निर्धारण की संरचना का निर्णय 04 किस्तों में लिया गया है।
परन्तु छटवें वेतनमान में वो कल्पना ही नहीं है एवं आदेश की भाषा को ही बदल दिया गया है।
जहाँ एक और सामान वेतन निर्धारण में 5500 करोड़ का बजट था वह छटवें वेतनमान में मात्र 1125 करोड़ का हो गया है।
यानि यह तो तय है कि सामान वेतन की सरंचना और छटवें वेतन के निर्धारण में बहुत अंतर है।
हमने कहीं धोखा तो नहीं खाया
जिसे हम अपनी उपलब्धि मान रहें है
वह हमारी भूल हो और एक बार फिर हम सरकार के हाथों छलै गए हों।
साथियों यह चिंतन का विषय है
अशोक कुमार देवराले
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