साथियो यह सर्व विदित है की आजाद ने मोर्चा के किये जा रहे प्रयासों के लिए अपना समर्थन देकर अध्यापको से इस प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की थी ।
लेकिन आज राजएक्सप्रेस समाचार पत्र में मोर्चा ने कहा है की आजाद अध्यापक संघ और राज्य अध्यापक संघ को मोर्चा में जगह नहीं दी जायेगी । हलाकि दोनों ही संघ अपने आप में सक्षम है ये सर्वविदित है लेकिन सवाल यह उठता है की जो लोग रात दिन अध्यापको के सामने सोशल मिडिया पर आजाद को मोर्चा में शामिल नहीं होने के आरोप लगाते रहे है वो लोग अपने आपको कोरी राजनितिक जमींन या श्रेय लेने की जद्दोजहद में क्यों फस गए ।
हम अभी भी किसी अध्यापक को कही आने जाने या न जाने की सलाह नहीं दे रहे ।
लेकिन आज इस प्रेस समाचार से मोर्चा ने एक साथ आने के विकल्पों को नष्ट कर दिया है ।
अखबार ने यह कहा है की संघो में तलवारे खिची हुई है । लेकिन दोस्तों यह कितना सच है यह आप जानते है । सहयोग करने को तलवारे खीचना कहते है आज पता चला ।
बात ये नहीं है बात अब ये है की सरकार के सामने इन्होंने अपने 2013 के एजेंडे के मुताबिक अपना असली रूप दिखाया है ।
आजाद किसी भी तरह के प्रदर्शन और तबादला के लिए तैयार है लेकिन पहले हम देखना चाहते है की सरकार ने किस हद तक विसंगतियां की है ।
बहुत दुःख हो रहा है आज इनकी सोच पर और आज में उन तमाम विश्लेषकों और आलोचकों से भी अपनी प्रतिक्रिया की उम्मीद रखता हूँ जो मोर्चा को सहयोग करने के लिए आजाद पर अपने विचारो की अभिव्यक्ति किया करते थे ।
बहरहाल जो लोग भोपाल में मौजूद रहकर आज प्रदर्शन करने जा रहे है उनकी भी नैतिक जवाबदारी बनती है कि वे अपने नेतृत्वकर्ताओं से पूछे की ये एकता के कैसे प्रयास है ?
क्या 1 दिन के प्रदर्शन के बाद सारी समस्या सुलझ जाना है या आजाद या आजाद समर्थको और राज्य अध्यापक संघ की कभी आवश्यकता नहीं होगी ।
आज एक शेर फिर याद आ गया
उड़ना है तुझको तो शफ्फाक बन
यू तो फ़ज़ाओं में कौए भी उड़ा करते है ।
बहरहाल भोपाल पहुचे अध्यापक आशार्थियों को हमारी शुभकामनाये । विशवास के साथ कह रहा हूँ की किसी भी बात से आप हताश नहीं होना । क्योंकि ये मर्दों का अंदाज़ नहीं होता ।
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले
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