शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ आवाज उठाना अत्यंत आवश्यक
राज्य अध्यापक संघ ने 2016 को शिक्षा क्रांति वर्ष घोषित किया है।
संघ के अध्यक्ष जगदीश यादव के अनुसार उनका संगठन पूरे साल शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ जागरुकता अभियान चलाएगा, जिसके लिए उन्होंने
(सबको शिक्षा-सबको काम, समान काम का समान दाम)
नारा दिया है। 3 जनवरी को सतना के मैहर से इसकी शुरूआत होगी,
इस मौके पर हमें भी बुलाया गया है। मैं जरूर जाऊंगा, इसीलिए अबसे सामने आ चुके शिक्षा के निजीकरण के इसी खतरे पर
शिक्षक कभी समाज का बौद्धिक नेतृत्व करता था, लेकिन आज वह शिक्षक ही नहीं रह गया है, उसे शिक्षाकर्मी, ठेकाकर्मी कहा जाने लगा है। केंद्र के पास शिक्षा विभाग नाम का कोई विभाग ही नहीं है। शिक्षा की दुरावस्था का बड़ा कारण शिक्षा का निजीकरण है। शासन शिक्षा स्वास्थ्य जैसे लोक कल्याणकारी कार्यक्रमों से पिण्ड छुड़ाना चाह रही है।
देश जब विकास की अंधेरे सुरंग में घुस रहा था तब अर्थशास्त्रियों, चिंतकों, विचारकों और जन पक्षधर राजनीतिक दलों ने खबरदार किया था कि डंकल प्रस्ताव पर हस्ताक्षर मत करो। यह सलाह तब बहुमत वाली सरकार ने नहीं मानी थी। नई आर्थिक नीति, उदारीकरण, ओपन विण्डो और भूमंडलीकरण के खतरों से भी सावधान किया गया था। इस सबको राष्ट्रीय प्रभुसत्ता और आत्मनिर्भरता के लक्ष्य के लिए आत्मघाती बताया गया था। खेद है इसे सत्ताधारी वर्ग ने नहीं माना। नतीजा यह निकला कि साम्राज्यवादी शक्तियों से दो सौ साल तक लडऩे वाला देश धीरे-धीरे आर्थिक उपनिवेश बनता चला गया। विश्व बैंक और विश्व व्यापार संगठन के जाल में फंसता चला गया।
आज स्थिति यह है कि हमारे सामने समूची शिक्षा, शिक्षा व्यवस्था और शिक्षा नीति के अपहरण का संकट उपस्थित हो गया है।
दु:खद सूचना यह है कि शिक्षा के क्षेत्र को वैश्विक व्यापार के लिए खोलने के लिए मोदी सरकार ने तैयारी कर ली है। सरकार ने ऐसा प्रस्ताव तैयार कर लिया है जो विश्व व्यापार संगठन (डब्लूटीओ) के सामने रखा जाएगा और उसमें शिक्षा का क्षेत्र वैश्विक व्यापार के लिए खोल दिया जाएगा। अभी स्थिति यह है कि निजी स्कूलों, कालेजों, विश्वविद्यालयों ने शिक्षा को आम जनता के लिए सपना बना दिया है, तब विदेशी यूनिवर्सिटियों का खर्च वही वहन कर सकेगा जो काले धन का स्वामी होगा।
अखिल भारतीय शिक्षा अधिकार मंच की ओर से डा. मेहर इंजीनियर, प्रो. वसी अहमद, प्रभाकर आराड़े, प्रो. जी हर गोपाल, प्रो. मधु प्रसाद, प्रो. अनिल सद्गोपाल, प्रो. के च्करधर राव, प्रो. के एम श्रीमाली और डा. आनंद तेलतुंूड़े ने शिक्षा जगत और शिक्षा प्रेमियों को आगाह करते हुए कहा कि डब्लूटीओ गेट्स शिक्षा को उपभोग के माल और शिक्षार्थी को उपभोक्ता में बदल देता है। इससे शिक्षा से गरीब तो वंचित होंगे ही, वे भी वंचित हो जाएंगे जो पैसा खर्च कर सकते हैं। क्योंकि सारी शिक्षा का कारपोरेट हित में अवमूल्यन कर दिया जाएगा इसी के साथ शिक्षा की प्रबोधनकारी, परिवर्तनकारी और सशक्तीकरण की भूमिका भी समाप्त हो जाएगी।
शिक्षा के बाजारीकरण, व्यापारीकरण एवं निजीकरण के खिलाफ मजबूत आंदोलन की जरूरत है, राज्य अध्यापक संघ ने इस जरूरत को महसूस किया है, इसीलिए उसके शिक्षा क्रांति अभियान जैसे कदम का स्वागत किया जाना चहिए।
शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ आवाज उठाना जरुरी
Sunday, 27 December 2015
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